Jivitputrika Vrat
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पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन यह व्रत किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत करने से संतान के कष्ट दूर हो जाते हैं. इस कथा एवं व्रत का संबंध महाभारत काल से जुड़ा भी माना गया है. इस व्रत के फलस्वरूप माताएं अपनी संतानों की सुरक्षा का वरदान पाती हैं तथा भगवान श्रीकृष्ण बच्चों की रक्षा करते हैं. जानिए इस व्रत से जुड़ी कथा और पाएं व्रत का संपूर्ण फल.
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यह है जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा
इस वशुभ दिन व्रत करने के साथ साथ कथा सुनने के द्वारा संपूर्ण फलों की प्राप्ति होती है. इस से संब्म्धित अनेक कथाएं प्राप्त होती हैं जिसमें से एक कथा राजकुमार जीमूतवाहन से संबंधित भी है. कथा अनुसार प्राचीन काल में एक राजकुमार था, जिसका नाम जीमूतवाहन था. एक दिन उसने अपना राज्य अपने भाइयों को सौंप दिया और अपने पिता की सेवा करने के लिए जंगल में चला गया. एक दिन जंगल में घूमते समय उन्होंने एक बुढ़िया को रोते हुए देखा. राजकुमार ने बुढ़िया से रोने का कारण पूछा तो उसने बताया, कि वह अपने पुत्र के विच्छोह होने के डर से भयभीत है क्योंकि उसके वंश में पक्षीराज गरुड़ को बलि देने की परंपरा है ऎसे में आज उसके बेटे की बारी है और वह मेरी एकमात्र संतान है. वृद्ध महिला की बात सुनकर जीमूतवाहन ने कहा, चिंता न करो आपके बेटे के स्थान पर मैं स्वयं गरुड़देव का भोजन बनने के लिए जाउंगा. जब गरुड़देव भोजन के लिए आए तो उन्होंने नागवंशी नहीं बल्कि किसी अन्य व्यक्ति को देखा और इसका कारण पूछा. राजकुमार ने सारी कहानी बता दी. जीमूतवाहन की बात सुनकर गरुड़ जी उसकी वीरता देखकर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने जीमूतवाहन को जीवनदान दिया और बलि न देने का वचन भी दे दिया. इस प्रकार तभी से संतान सुरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य के लिए जीमूतवाहन की पूजा की जाती है.
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जीवित्पुत्रिका व्रत महत्व
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है. यह व्रत पूरे भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है. बिहार और उत्तर प्रदेश में इस पर्व की विशेष महत्ता देखने को मिलती है. संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए कई व्रत रखे जाते हैं, जीवित्पुत्रिका भी उनमें से एक है. इसे जिउतिया, जीवतिया आदि कई नामों से जाना जाता है.