खास बातें
Annaprasan Sanskar: अन्नप्राशन संस्कार के माध्यम से शिशु को जन्म के 6 महीने के बाद अन्न चखाया जाता है और उससे पहले वह केवल मां के दूध पर ही आश्रित होता है। तो आइए जानते हैं कि इस संस्कार का क्या महत्व है।
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Annaprasan Sanskar: अन्नप्राशन संस्कार 16 संस्कारों का छठा संस्कार है और यह संस्कार शिशु के जन्म के 6 महीने के बाद ही किया जाता है। इस संस्कार के माध्यम से शिशु को पहली बार अन्न चखाया जाता है। छठे माह में अन्नप्राशन संस्कार को लेकर हमारे ऋषियों के मत हैं, "षष्ठे मासेअन्नप्राशनम्" अर्थात् छठे महीने में ही अन्नप्राशन संस्कार किया जाना चाहिए। इसके साथ ही आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार भी बच्चे को प्रथम बार अन्न चखाने के विषय में यही कथन है। "षण्मासं चैनमन्नं प्राशयेल्लघु हितं च।।" यानि कि छठे महीने में ही शिशु को अन्न खिलाना चाहिए।
अन्नप्राशन संस्कार का महत्व
छठे माह से पहले शिशु की शारीरिक संरचना केवल माता के दूध पर ही निर्भर रहती है और उसी से ही उसका शारीरिक पोषण होता है। लेकिन 6 महीने के बाद शरीर की वृद्धि तीव्रता से होती है और इसके लिए माता का दूध भी पर्याप्त नहीं होता, इसलिए शिशु को अन्न जैसे ठोस आहार ग्रहण करवाने की प्रक्रिया शुरू की जाता है। इसके अलावा 6 महीने के बाद से शिशु के दांत भी निकलने शुरू हो जाते हैं और वह अन्न को चबाने में भी सक्षम होता है। शिशु को अन्नप्राशन से पूर्व यदि माता का दूध पर्याप्त नहीं होता है, तो केवल गाय के दूध के सेवन करवाने की सलाह दी जाती है। क्योंकि गाय का दूध, माता के दूध की तरह ही पतला होता है और उसमें सभी पौष्टिक गुण होते हैं जो माता के दूध में पाए जाते हैं। यह भी एक कारण है कि गाय को माता का दर्जा प्राप्त है।
अन्नप्राशन का मनोवैज्ञानिक पहलू
अपने अधिकतर स्थानों पर देखा होगा कि अन्नप्राशन संस्कार के दौरान शिशु के समक्ष कुछ वस्तु में रखी जाती हैं और जिस भी वस्तु को वह पकड़ता है, तो कहा जाता है कि वह भविष्य में इस वस्तु से संबंधित कार्य करता है और कुछ ऐसे ही मत हमारे ऋषि मुनियों द्वारा भी कह गए हैं। अन्नप्राशन पूर्ण होने के बाद यानि कि शिशु को आन्न चखाने के बाद शिशु के समक्ष कुछ पुस्तकें, वस्त्र, शस्त्र आदि वस्तुएं रखनी चाहिए और जिस भी वस्तु को शिशु अपनी इच्छा के अनुसार पकड़ता है या फिर उसे पर हाथ रखता है उसी के अनुसार उसकी जीविका चलती है।
अन्नप्राशन संस्कार की विधि
कहा जाता है कि यदि आप शुरूआत में मीठे का सेवन करते हैं, तो अपका जीवन सुखमयी बीतता है। ठीक इसी प्रकार से जब शिशु को प्रथम बार अन्न चखाया जाता है, तो उसे भी कुछ मीठा ही खिलाया जाता है। शिशु के अन्नप्राशन संस्कार में आपको अपने शिशु के लिए चावल औऱ गाय के दूध से बनी खीर खिलानी चाहिए। इसके अलावा आप अपनी संस्कृति और रिवाज के अनुसार अन्य व्यंजन खिला सकते हैं। लेकिन सबसे पहले चांदी के चम्मच से शिशु का खीर चखानी चाहिए, क्योंकि कहा जाता है कि चांदी, धातुओं में सबसे अच्छी और पवित्र मानी जाती है, चांदी की चम्मच से अन्न खिलाने से सात्विकता आती है। इसके बाद अन्य व्यंजन चखाए जाते हैं। हालांकि अन्नप्राशन के बाद शिशु को पूर्ण रूप से अन्न नहीं चखाना चाहिए। कोशिश करें की अन्नप्राशन के बाद तरल पदार्थों का ही सेवन करवाना शुरू करें।
तो, इस प्रकार से आप अन्नप्राशन संस्कार संपूर्ण करवा सकते हैं। यदि आपके पास इससे संबंधित कोई सवाल है, तो आप हमारे ज्योतिषाचार्यों से संपर्क कर सकते हैं।