जानिए ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण राज
काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थिति ज्ञानवापी मस्जिद अब सुर्खियों में शामिल हो गई है. इस मस्जिद के भीतर मंदिर के अवशेषों के होने की पुष्टि की गई ओर याचिका दायर की गई. परिसर का सर्वे करने वाले वाराणसी कोर्ट द्वारा नियुक्त आयोग ने कोर्ट में अर्जी देकर अपनी रिपोर्ट देने के लिए दो और दिन मांगे हैं. अदालत ने मंगलवार को अधिवक्ता आयुक्त अजय कुमार मिश्रा और गुरुवार को सुनवाई के दौरान नियुक्त दो अन्य आयुक्तों से सर्वेक्षण रिपोर्ट मांगी थी लेकिन अब अजय कुमार मिश्रा ही इससे नदारद हो गए हैं सोमवार को, वाराणसी की अदालत ने जिला प्रशासन को मस्जिद परिसर में उस स्थान को सील करने का निर्देश दिया जहां वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के दौरान एक शिवलिंग पाए जाने का दावा किया गया था.
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आईये जानते हैं ज्ञानवापी का इतिहास
यह स्थान मुख्य रुप से एक विश्वेश्वर मंदिर था, जिसे टोडर मल द्वारा नारायण भट्ट के साथ स्थापित किया गया था जो बनारस के सबसे प्रसिद्ध ब्राह्मण परिवार के मुखिया थे. कभी-कभी अकबर के शासनकाल के दौरान सोलहवीं शताब्दी के अंत में, ऐसा प्रतीत होता है कि जहांगीर के एक करीबी सहयोगी वीर सिंह देव बुंदेला ने सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में मंदिर का नवीनीकरण किया था. मंदिर और स्थल के इतिहास के बारे में सटीक विवरण पर एक हद तक बहस होती रही है.
औरंगजेब द्वारा किया गया दमन कार्य
ज्ञानवापी मस्जिद को इतिहासकार जेम्स प्रिंसेप द्वारा विश्वेश्वर, बनारस के मंदिर के रूप में चित्रित किया गया है. अब ध्वस्त हो चुके मंदिर की असली दीवार आज भी मस्जिद में खड़ी है.
1669 के आसपास, औरंगजेब ने मंदिर को गिराने का आदेश दिया और उसके स्थान पर ज्ञान वापी मस्जिद का निर्माण शुरू किया. दक्षिणी दीवार इसके घुमावदार मेहराबों, बाहरी ढलाई और तोरणों के साथ को क़िबला दीवार में बदल दिया गया था. ये जीवित तत्व मूल मंदिर पर मुगल स्थापत्य शैली के प्रभाव को प्रमाणित करते हैं. मस्जिद का नाम एक निकटवर्ती कुएं, ज्ञान वापी अर्थात ज्ञान का कुआं से लिया गया है.
विद्वान औरंगजेब के विध्वंस के लिए प्राथमिक प्रेरणा के रूप में धार्मिक कट्टरता के बजाय राजनीतिक कारणों को मानते हैं. ऑक्सफोर्ड वर्ल्ड हिस्ट्री ऑफ एम्पायर कहता है कि इस विध्वंस को औरंगजेब के "रूढ़िवादी झुकाव" के संकेत के रूप में व्याख्या किया जा सकता है, हिंदुओं और उनके पूजा स्थलों के प्रति उसकी नीतियां लगातार विरोधाभासी थीं. इतिहास से संकेत मिलता है कि विशेष रूप से यह स्थान देश भर के हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए एक लोकप्रिय केंद्र बन गया था. विभिन्न दावों के बारे में विवरण अनुसार ज्ञात होता है कि मंदिर के विध्वंस के संबंध में विवाद इस प्रकार रहा है कि उनके नक्शे से न केवल यह पता चलता है कि ज्ञानवापी मस्जिद एक ध्वस्त विश्वेश्वर मंदिर के स्थान पर रखी गई थी, बल्कि मंदिर-स्तंभ को भी अलग से चिह्नित किया गया था.
जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
18वीं शताब्दी की शुरुआत तक, बनारस लखनऊ के नवाबों के प्रभावी नियंत्रण में था. ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन से गंभीर विलय नीतियों के साथ, देश भर के कई शासकों और यहां तक कि प्रशासनिक अभिजात वर्ग ने अपने घर-भूमि में सांस्कृतिक अधिकार का दावा करने के लिए बनारस के ब्राह्मणीकरण में निवेश करना शुरू कर दिया. मराठा, विशेष रूप से, औरंगजेब के हाथों धार्मिक अन्याय के बारे में अत्यधिक मुखर हो गए और नाना फडणवीस ने मस्जिद को ध्वस्त करने और विश्वेश्वर मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव रखा.1742 में, मल्हार राव होल्कर ने इसी तरह की कार्रवाई का प्रस्ताव रखा तथा उनके लगातार प्रयासों के बावजूद, कई हस्तक्षेपों के कारण ये योजनाएँ अमल में नहीं आईं. अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, जैसा कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने नवाबों को बाहर कर बनारस का सीधा नियंत्रण प्राप्त कर लिया, मल्हार राव के उत्तराधिकारी और बहू अहिल्याबाई होल्कर ने मस्जिद के तत्काल दक्षिण में वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण किया
ज्ञानवापी में मिला शिवलिंग
सर्वेक्षण 16 मई को संपन्न हुआ और हिंदू याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने सर्वेक्षण पर संतोष व्यक्त किया और कहा कि उन्हें "निर्णायक सबूत" मिल गए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मस्जिद के अंदर एक शिवलिंग पाया गया था और बाद में उस क्षेत्र को सील करने के आदेश जारी किए गए जहां शिवलिंग पाया गया था. अब जिसमें उस शिवलिंग को फव्वारा कहा जा रहा है मुस्लिम पक्ष के द्वारा ऎसे में कोर्ट की सुनवाई जो 17 मई को भी अहम रुप से चल रही है आने वाले समय के लिए कई निर्णयक स्थितियों के निर्माण को दर्शाने वाली होगी.
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