Guruvar Vrat : आषाढ़ मास का पहला गुरुवार इस विधि से करें गुरुवार व्रत पूजा, शीघ्र प्रसन्न होंगे भगवा
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गुरुवार का दिन भगवान विष्णु के लिए साथ ही नव ग्रहों में गुरु अर्थात बृहस्पति की पूजा के लिए विशेष होता है. इस दिन को अत्यंत शुभ माना जाता है और इस दिन किया जाने वाला व्रत सभी प्रकार के शुभ फल प्रदान करने में सहायक होता है. किसी भी प्रकार के दोष एवं आर्थिक विपन्नता से मुक्ति के लिए गुरुवार के दिन व्रत करना अत्यंत लाभ प्रदान करने वाला होता है. आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष को गुरुवार का दिन 8 जून को होगा इस दिन गुरुवार का व्रत किया जाएगा तथा श्री विष्णु पूजन द्वारा भक्तों के सभी कष्ट भी दूर होंगे.
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गुरु के नाम अनुसर इस दिन को गुरुवार के व्रत के रुप में जाना जाता है. विवाह संबंधी परेशानी, संतान संबंधी परेशानी या फिर किसी भी प्रकार का आर्थिक संकट हो तब इस व्रत को करने से सभी प्रकार के दोष समाप्त हो जाते हैं. कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है. जो लोग इस दिन व्रत रखते हैं और विधिपूर्वक उनकी पूजा करते हैं, उन्हें व्रत के इन नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए.
आईये जानते हैं कि गुरुवार का व्रत करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए
गुरुवार व्रत संबंधी जानकारी
वैसे तो हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी देवता को समर्पित होता है, जैसे सोमवार भगवान शिव को, मंगलवार हनुमान जी को और बुधवार गणेश जी को समर्पित होता है. इसी तरह गुरुवार के दिन भगवान श्री हरि की पूजा एवं गुरु भगवान की पूजा करने का विधान है. गुरुवार का व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने और व्रत रखने से भगवान प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर कृपा बरसाते हैं.
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गुरुवार व्रत पूजा विधि
गुरुवार के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्म और स्नान आदि करने के पश्चात व्रत का संकल्प धारण करना चाहिए. इसके बाद पूजा घर या केले के पेड़ के नीचे लाल या पीले आसन पर भगवान श्री हरि विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करके उन्हें प्रणाम करना चाहिए. भगवान को पीला वस्त्र अर्पित करना चाहिए. हाथ में चावल और पवित्र जल लेकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
पानी और हल्दी को पूजा स्थान पर रखना चाहिए. भगवान को गुड़ और एवं चने की दाल का भोग लगाना उत्तम होता है. गुरुवार व्रत की कथा का पाठ करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं. इसके साथ ही पूजा और आरती करते हुए भगवान को प्रणाम करके केले या किसी अन्य पौधे की जड़ में दूध और हल्दी का जल डाल कर पूजा संपन्न करनी चाहिए.