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Gupt Navaratri Dhumavati: गुप्त नवरात्रों में माता धूमावती का पूजन देता है सुख शांति का आशीर्वाद

Acharya RajRani Updated 16 Feb 2024 09:55 AM IST
धूमावती
धूमावती - फोटो : my jyotish

खास बातें

 Gupt Navaratri Dhumavati: गुप्त नवरात्रों में माता धूमावती का पूजन देता है सुख शांति का आशीर्वाद 

Maa Dhoomavati :गुप्त नवरात्रि के दमय पर देवी धूमावती का पूजन भक्तों को सुख प्रदान करता है.

मान्यताओं के अनुसार माता ने जब भगवान शिव को निगल लिया तो उन्हें यह नाम धूमावती प्राप्त हुआ. आइये जान लेते हैं देवी पूजन का प्रभाव 
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Gupt Navaratri Dhumavati: गुप्त नवरात्रों में माता धूमावती का पूजन देता है सुख शांति का आशीर्वाद 


Maa Dhoomavati :गुप्त नवरात्रि के दमय पर देवी धूमावती का पूजन भक्तों को सुख प्रदान करता है. मान्यताओं के अनुसार माता ने जब भगवान शिव को निगल लिया तो उन्हें यह नाम धूमावती प्राप्त हुआ. आइये जान लेते हैं देवी पूजन का प्रभाव 

Dhumavati Sadhana Vidhi मां धूमावती पूजन सुख एवं सौभाग्य के साथ साथ संकल्प की शक्ति को प्रदान करने वाला है. देवी को शुभता प्रदान करने वाली तथा नकारात्मक को समाप्त कर देने वाली हैं. 

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गुप्त नवरात्रि के दिन माता का पूजन रोग दोष एवं भोगों को संतुष्ट कर देने वाला होता है. हिंदू मान्यता के अनुसार मां धूमावती का पूजन आर्थिक संपदा के साथ साथ जीवन में सात्विकता को प्रदान करने वाला होता है. मां धूमावती अलक्ष्मी के नाम से भी प्रसिद्ध हैं वह समस्त प्रकार के कलह कलेश को समाप्त कर देने वाली हैं. कथाओं के अनुसार महाविद्या भगवान शिव द्वारा प्रकट होती है जब महादेव को अपना ग्रास बना लेती हैं तब धुआं उनके शरीर से निकलने लगता है और वह धूमावती के नाम से पूजनीय हो जाती हैं. देवी को सातवीं महाविद्या कहा जाता है. आइये जान लेते हैं देवी पुजन एवं इनके स्त्रोत का पाठ एवं पूजा महत्व. 

कैसे करें देवी धूमावती की पूजा

मां धूमावती की पूजा करने के लिए भक्त को सुबह से ही अपनी पूजा शुरू कर देनी चाहिए. इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए. पूजा के लिए पूजा स्थल को शुद्ध कर लेना उचित होता है. देवी मां के चित्र के समक्ष धूप दीप, फल, भोग प्रसाद अर्पित करते हुए देवी की पूजा करनी चाहिए. देवी पूजा में माता को शुद्ध एवं सात्विक रुप से भोग अर्पित करते हुए पूजा संपन्न करते हैं. पूजा समाप्ति के बाद से जो भी गलती हुई हो उसके लिए क्षमा मांगनी चाहिए.

देवी पूजा में माता के स्त्रोत का पाठ भी अवश्य करना चाहिए. इसके साथ ही देवी मां से संकटों और कष्टों को दूर करने की प्रार्थना करनी चाहिए. माँ धूमावती का अवतार पापियों का नाश करने के लिए हुआ था. धन प्राप्ति के लिए भी माता की पूजा की जाती है. माता को ज्येष्ठा भी कहा जाता है. इनकी पूजा अत्यंत फलदायी होती है. खास बात यह है कि इस देवी को चढ़ाया जाने वाला प्रसाद मीठा नहीं बल्कि नमकीन होता है.

देवी धूमावती पूजन स्त्रोत महत्व 
देवी पूजा में देवी स्त्रोत का पाठ विशेष होता है. कथाओं के अनुसार महाविद्या भगवान शिव को जन क्षुद्धा के कारण निगल लेती हैं तो उन्हें इसका प्रभाव अपनी देह की कांति को खोकर झेलना होता है. किंतु माता का प्रभाव समस्त सुखों के लिए विशेष रहा है. गुप्त नवरात्रि के समय माता का पूजन एवं स्त्रोत करने से कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है. देवी को सातवीं महाविद्या कहा जाता है. आइये जान लेते हैं देवी पुजन एवं इनके स्त्रोत का पाठ एवं पूजा महत्व. 

मां धूमावती स्तोत्रं

प्रातर्या स्यात्कुमारी कुसुमकलिकया जापमाला जपन्ती,
मध्याह्ने प्रौढरूपा विकसितवदना चारुनेत्रा निशायाम्.
सन्ध्यायां वृद्धरूपा गलितकुचयुगा मुण्डमालां,
वहन्ती सा देवी देवदेवी त्रिभुवनजननी कालिका पातु युष्मान्.

बद्ध्वा खट्वाङ्गकोटौ कपिलवरजटामण्डलम्पद्मयोने:,
कृत्वा दैत्योत्तमाङ्गैस्स्रजमुरसि शिर शेखरन्तार्क्ष्यपक्षै:.
पूर्णं रक्तै्सुराणां यममहिषमहाशृङ्गमादाय पाणौ,
पायाद्वो वन्द्यमानप्रलयमुदितया भैरव: कालरात्र्याम्.

चर्वन्तीमस्थिखण्डम्प्रकटकटकटाशब्दशङ्घातम्,
उग्रङ्कुर्वाणा प्रेतमध्ये कहहकहकहाहास्यमुग्रङ्कृशाङ्गी.
नित्यन्नित्यप्रसक्ता डमरुडिमडिमां स्फारयन्ती मुखाब्जम्,
पायान्नश्चण्डिकेयं झझमझमझमा जल्पमाना भ्रमन्ती.

टण्टण्टण्टण्टटण्टाप्रकरटमटमानाटघण्टां वहन्ती,
स्फेंस्फेंस्फेंस्कारकाराटकटकितहसा नादसङ्घट्टभीमा.
लोलम्मुण्डाग्रमाला ललहलहलहालोललोलाग्रवाचञ्चर्वन्ती,
चण्डमुण्डं मटमटमटिते चर्वयन्ती पुनातु.

वामे कर्णे मृगाङ्कप्रलयपरिगतन्दक्षिणे सूर्यबिम्बङ्कण्ठे,
नक्षत्रहारंव्वरविकटजटाजूटके मुण्डमालाम्.
स्कन्धे कृत्वोरगेन्द्रध्वजनिकरयुतम्ब्रह्मकङ्कालभारं,
संहारे धारयन्ती मम हरतु भयम्भद्रदा भद्रकाली.

तैलाभ्यक्तैकवेणी त्रपुमयविलसत्कर्णिकाक्रान्तकर्णा,
लौहेनैकेन कृत्वा चरणनलिनकामात्मन: पादशोभाम्.
दिग्वासा रासभेन ग्रसति जगदिदंय्या यवाकर्णपूरा,
वर्षिण्यातिप्रबद्धा ध्वजविततभुजा सासि देवि त्वमेव.

सङ्ग्रामे हेतिकृत्वैस्सरुधिरदशनैर्यद्भटानां,
शिरोभिर्मालामावद्ध्य मूर्ध्नि ध्वजविततभुजा त्वं श्मशाने प्रविष्टा.
दृष्टा भूतप्रभूतैः पृथुतरजघना वद्धनागेन्द्रकाञ्ची,
शूलग्रव्यग्रहस्ता मधुरुधिरसदा ताम्रनेत्रा निशाया 
 
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