बता दें कि हिंदू के फैलाव के कारण और कुछ मत भिन्नता के कारण गायत्री जयंती को देश के दक्षिणी हिस्से में श्रावण पूर्णिमा के दिन भी मनायी जाती है और इस साल यह पूर्णिमा 22 अगस्त के पड़ रही है। श्रावण पूर्णिमा के दिन गायत्री जयंती को संस्कृत दिवस के रूप में भी जाना जाता है और यह हर इस दिन ही मनाया जाता है।
इस शुभ अवसर पर मां गायत्री की पूजा के बाद संस्कृत कवि सम्मेलन, लेखक गोष्ठी, छात्रों की भाषण तथा श्लोकोच्चारण प्रतियोगिता आदि का आयोजन भी किया जाता है।
तो आइए जानते है मां गायत्री जयंती से जुड़ी विशेष बातें...
वेद माता गायत्री:
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता गायत्री को त्रिमूर्ति देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की देवी माना जाता है। इसलिए माता को सभी वेदों की देवी होने के कारण वेद माता भी कहां जाता है।
कहते है कि माता को समस्त सात्विक गुणों का प्रतिरूप है और ब्रह्मांड में मौजूद समस्त सद्गगुण माता गायत्री की ही देन है। माता गायत्री को देवताओं की माता और देवी सरस्वती, पार्वती और लक्ष्मी मां का अवतार भी कहां जाता है।
गायत्री जयंती की तारीख – 21 जून 2021 को ज्येष्ठ एकादशी के दिन
गायत्री जयंती तिथि प्रारंभ – 20 जून 2021 रविवार के दिन शाम 4 बजकर 21 मिनट से शुरू
गायत्री जयंती तिथि समाप्त – 21 जून 2021 सोमवार के दिन दोपहर 01 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।
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माता गायत्री का विवाह:
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मां गायत्री का विवाह ब्रह्माजी से हुआ कहां जाता है। हिंदू वैदिक साहित्य और पुराणों के अनुसार ब्रह्माजी की दो पत्नी हैं, एक गायत्री और दूसरी सावित्री।
ब्रह्मा की अर्धांगिनी होने के नाते धरती पर निरंतरता बनाए रखने के लिए माता गायत्री चेतन जगत में कार्य करतीं हैं। वहीं माता सावित्री भौतिक जगत के संचालन में सहायता करती है।
गायत्री मंत्र की उत्पत्ति:
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पहली बार गायत्री मंत्र का आभास ब्रह्माजी को हुआ और फिर उन्होंने अपने प्रत्येक मुख से गायत्री मंत्र की व्याख्या की। मान्यता है कि हिंदू धर्म में वेदों को नींव कहे जाने वाले वेद गायत्री मंत्र की व्याख्या है जो ब्रह्मा जी ने की थी। यह भी कहां जाता है कि गायत्री मंत्र पहले देवी-देवताओं तक ही सीमित था। जिस प्रकार भागीरथ ने गंगा को धरती पर लाकर लोगों के तन- मन को पवित्र किया। उसी तरह ही ऋषि विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र को धरती तक पहुंचकर लोगों की आत्मा को शुद्ध करने का कार्य किया। माना जाता है कि गायत्री माता सूर्य मंडल में निवास करतीं हैं। इसलिए यह भी कहां जाता है कि अगर किसी की कुंडली में सूर्य दोष हो, वे लोगों गायत्री मंत्र का जाप करने से सूर्य दोष से मुक्ति पा सकते हैं।
गायत्री मंत्र का अर्थ:
हर एक मंत्र की तरह गायत्री मंत्र का जाप करने से भी अपनी ध्वन्यात्मकता के माध्यम से आपके शरीर, मन और आत्मा को पवित्र करता है। इस मंत्र में 24 अक्षर साधकों की 24 शक्तियों को जाग्रत करने का कार्य करते हैं। कहते है कि इस मंत्र का जाप करने से विभिन्न प्रकार की सफलता सिद्धियां और सम्पन्नता जैसे गुण मिलते हैं।
तो आइए आज मंत्र का अर्थ और शब्द समझते हैं
मंत्र-
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
मंत्र का हिंदी अर्थ – उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।
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पूजा विधि-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गायत्री जयंती के दिन व्रत भी रखा जाता है और इस व्रत को किसी भी स्थिति में भक्त रख सकते हैं। मां गायत्री की पूजा हर स्थिति में लोगों के लिए लाभदायक होती हैं, लेकिन इस शुभ दिन विधि पूर्वक, निस्वार्थ और भावनाओं के कम से कम कर्मकाण्डों के साथ की गयी गायत्री पूजा को अति शुभ और बहुत ही लाभदायक माना गया है।
सुबह जल्दी उठ कर अपने सारे काम समाप्त कर और फिर स्नान आदि करें। फिर एक स्वच्छ और निश्चित स्थान पर बैठकर मां की उपासना करें। इसी के साथ कम से कम तीन बार गायत्री मंत्र का जाप करें।
गायत्री जयंती के दिन पंचकर्म के माध्यम से अपने शरीर को पवित्र करें।
पूजा के लिए मां गायत्री की मूर्ति या तस्वीर के समक्ष बैठकर माता का ध्यान करें।
फिर माता को विधि-विधान के साथ पूजा करें। माता को जल, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप और नैवेद्य चढ़ाएं।
फिर माता का ध्यान लगाते हुए गायत्री मंत्र की तीन माला या कम से कम 15 मिनट तक मंत्र उच्चारण करें। ध्यान रहे कि मंत्र उच्चारण करते समय आपके होंठ हिलते रहें लेकिन आपकी आवाज पास बैठे व्यक्ति को सुनाई न दें।
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