Gauri Pujan
- फोटो : google
देवी गौरी का पूजन सभी प्रकार के सुखों को प्रदान करने वाला होता है. गौरी पूजन प्रत्येक माह के किसी विशेष तिथि पर होता है. इसमें से ज्येष्ठ गौरी पूजा का महान पर्व भाद्रपद माह में मनाया जाता है. यह महाराष्ट्र के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इस व्रत को लेकर महिलाओं में काफी उत्साह रहता है कहा जाता है कि यह व्रत गणपति के साथ संबंधित होता है. कुछ कथाओं में इसका संबंध देवी पार्वती के द्वारा भक्तों की संकट से रक्षा करने एवं भक्तों को सुख प्रदान करने से भी रहा है.
मात्र रु99/- में पाएं देश के जानें - माने ज्योतिषियों से अपनी समस्त परेशानियों
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ज्येष्ठा गौरी पूजन का व्रत मनाया जाता है यह व्रत बहुत ही कम घरों में मनाया जाता है. कथाओं के अनुसार जीवन में कष्टों से पीड़ित सभी स्त्रियाँ श्री महालक्ष्मी गौरी की शरण में गईं और उनसे अपने विवाह को स्थायी बनाने की प्रार्थना की. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को श्री महालक्ष्मी गौरी ने राक्षसों का वध किया तथा शरण में आयी स्त्रियों के पतियों तथा पृथ्वी के प्राणियों को सुखी किया. इसीलिए महिलाएं अखंड वैवाहिक सुख पाने के लिए ज्येष्ठा गौरी का व्रत रखती हैं.
काशी दुर्ग विनायक मंदिर में पाँच ब्राह्मणों द्वारा विनायक चतुर्थी पर कराएँ 108 अथर्वशीर्ष पाठ और दूर्बा सहस्त्रार्चन, बरसेगी गणपति की कृपा ही कृपा सितंबर 2023
गौरी पूजा महत्व एवं पौराणिक संदर्भ
गौरी पूजा का समय भाद्रपद माह में मनाया जाता है. शास्त्रों में इन्हें गणेश जी की माता और देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन बताया गया है. इसीलिए उन्हें जेष्ठा भी कहा जाता है. पद्म पुराण में कहा गया है कि जिस समय समुद्र मंथन हुआ था, उस समय विष निकलने पर ज्येष्ठा गौरी ही ज्येष्ठा के रूप में अवतरित हुई थीं.
गणपति स्थापना और विसर्जन पूजा : 19 सितंबर से 28 सितंबर 2023
गौरी पूजा विधि
ज्येष्ठ गौरी व्रत के दिन शुभ मुहूर्त में माता गौरी की मूर्ति स्थापित की जाती है. माता गौरी की मूर्ति को जल से स्नान कराएं और कपड़े से ढककर एक साफ चौकी पर रखें. फिर मां को साड़ी पहनाएं और सोलह श्रृंगार करना चाहिए. देवी के माथे पर हल्दी और कुमकुम का तिलक लगाना चाहिए. इसके बाद अपने माथे पर भी तिलक लगाएं. फिर मां गौरी को विभिन्न प्रकार के पकवानों का भोग लगाना चाहिए. माता की आरती करनी चशैए. इस दिन गणेश जी का पूजन भी करना चाहिए. माता की आरती करके इस व्रत का समापन करना चाहिए. कुछ स्थानों में भादो माह में मनाया जाने वाला यह पर्व तीन दिनों तक होता है. जिसमें लगातर माता का पूजन होता है.