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Rice On Ekadashi: जानिए ज्योतिष और विज्ञान के आधार पर क्यों वर्जित है एकादशी को चावल का सेवन

Myjyotish Expert Updated 02 Feb 2022 05:24 PM IST
एकादशी को चावल का सेवन
एकादशी को चावल का सेवन - फोटो : google
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एकादशी व्रत भगवान विष्णु को बहुत अधिक प्रिय है। एकादशी अर्थात् प्रत्येक मास के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तारीख़।  प्रत्येक वर्ष 24 बार एकादशी तिथि आती है और हर अधिक मास में 26। मान्यता है कि भगवान को प्रिय इस तिथि के दिन चावल नहीं खाने चाहिए। चाहे वह व्यक्ति व्रत रखे या नहीं, चावल खाना वर्जित है। आइए जानते हैं क्यों है एकादशी को चावल का सेवन वर्जित…

चूँकि, एकादशी तिथि श्रीहरि विष्णु हेतु समर्पित है। इसलिए, इसे हरि वासर या हरि का दिवस/दिन भी कहते हैं। इस व्रत का महत्व है कि इसे करने वाले के सभी पाप स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं तथा मृत्योपरांत उस व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। शास्त्रों में लिखे सभी नियमों से परिपूर्ण किए गए व्रत का ही लाभ मिलता है। यदि इन नियमों का तनिक भी पालन ना हो तो लाभ नहीं मिलता। सबसे पहला नियम है कि एकादशी को तामसिक भोजन से दूर ही रहना चाहिए और चावल तो क़तई नहीं सेवन करना चाहिए। इस प्रकार के सेवन से मन अशुद्ध हो जाता है।

शास्त्रोचित मान्यता है कि जल चंद्रमा का कारक है। जल तत्व चावल में अधिक होता है। चावल के सेवन से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है। जो नुक़सान देय है। इससे मन की एकाग्रता पर असर पड़ता है और मन विचलित और चंचल हो जाता है। जिस कारण व्रत पूर्ण करने में समस्या आ जाती है। यह भी कहते हैं कि इस दिन सात्विकता को बनाए रखने हेतु चावल का सेवन वर्जित है। पुराण बताते हैं कि एकादशी को चावल का सेवन से अखाद्य पदार्थ का विपरीत फल मिलता है। इससे इंद्रियों पर क़ाबू नहीं रहता जो की इस व्रत हेतु महत्व पूर्ण है। जिससे कि मन निर्मल हो सके।
 
एकादशी को चावल का सेवन ना करने के पीछे पौराणिक कथाएँ भी प्रचलित हैं। एक बार देवी शक्ति का क्रोध इतना बढ़ गया कि उससे बचने हेतु महर्षि मेधा ने शरीर तक का त्याग कर दिया था। उनका एक अंश पृथ्वी में समा गया था। उनका यही अंश चावल व जौ के रूप में उपजा जिस कारण इसे जीव माना जा सकता है। पौराणिक कथा एकादशी पर चावल और जौ के सेवन ना करने का विशेष कारण भी बताती है। जिस दिन महर्षि मेधा का शरीर पृथ्वी में समाया, तब एकादशी तिथि ही थी। इसीलिए एकादसी तिथि को चावल का सेवन महर्षि मेधा के माँस और रक्त के सेवन के बराबर माना जाता है।

हमारे सनातन धर्म में लगभग सभी पौराणिक या आध्यात्मिक मान्यताएं वैज्ञानिक आधार पर ही बनाई गईं हैं, जिन्हें धर्म से जोड़ दिया है। हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों के द्वारा बताया गया ज्ञान आज विज्ञान तक के काम आ रहा है। विज्ञान भी मानता है कि चंद्रमा का प्रभाव जल पर अधिक होता है। चंद्रमा मन का कारक ग्रह होता है। वहीं चावल में जल तत्व की मात्रा भी कहीं अधिक होती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि चावल के सेवन से मनुष्य के शरीर में जल की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। जिस कारण मन विचलित और चंचल होने की सम्भावना अधिक ही होती है। इसलिए चावल का सेवन व्रत में वर्जित है। क्योंकि इससे तामसिक प्रवृत्तियाँ जाग्रत होती हैं। जो कि ईश्वर को बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं।
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