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मंदिर प्रशासन के अनुसार मूल मंदिर में एक छतरी जैसी संरचना और भगवान कृष्ण की एक मूर्ति थी। माना जाता है श्री कृष्ण के परपोते द्वारा ये मंदिर रातो रात बनवाया गया है । 800 ईस्वी में मंदिर आदि शंकराचार्य द्वारा पुनर्निर्मित किया गया जिसके बाद से ही उनकी यात्रा का स्मारक मंदिर परिसर के भीतर रखा गया है। जगत मंदिर कि संरचना अरब सागर के पानी से उठती प्रतीत होती है , श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुचने के लिये 50 सीढिया चढ़नी पड़ती है ये मंदिर 5 मंजिला इमारत है जिसका शिखर 43 मीटर ऊँचा है तथा इससे सहारा देने के लिए 72 स्तंभों व मोटी दीवारे है, मंदिर के दीवारों पर पौराणिक जीवों के साथ-साथ लोकप्रिय कहानियो की नक्काशी है, मंदिर के शिखर के ऊपर 52 गज कपड़े से बना एक ध्वज फहराया जाता है, जो सूर्य और चंद्रमा को दर्शाता है, मंदिर के दो द्वार हैं - दक्षिण में स्वर्ग द्वार और उत्तर में मोक्ष द्वार। प्रवेश द्वार या मोक्ष द्वार ही मंदिर को मुख्य बाजार से जोड़ता है। दूसरी ओर, स्वर्ग द्वार या स्वर्ग का द्वार मंदिर को गोमती नदी से जोड़ता है।
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सामान्य तौर पर, मंदिर सुबह 6 से दोपहर 1 बजे के बीच और फिर शाम 5 से 9:30 बजे के बिच श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है।
द्वारका के अन्य प्रमुख स्थल:
जगत मंदिर शहर का प्रमुख स्थल है, वही द्वारका में अन्य धार्मिक स्थल भी हैं जैसे जगत मंदिर से करीब 2 किमी दूर स्थित रुक्मिणी देवी मंदिर, जो भगवान कृष्ण की पत्नी को समर्पित है ।
एक अन्य प्रमुख संरचना है सुदामा सेतु , जो गोमती नदी पर बना एक ऐसा पुल है जिससे लोग पैदल पार कर सकते है ।
भगवान श्री कृष्ण के बचपन के दोस्त के नाम पर बना ये पुल द्वारका के दक्षिण-पूर्व में स्थित एक छोटे से द्वीप पंचकुई तीर्थ के साथ मंदिर को जोड़ता है। 166 मीटर लंबे और 4.2 मीटर चौड़े इस पुल के निर्माण से पहले लोगों को द्वारका पहुंचने के लिए नदी पार करनी पड़ती थी।
पुल सुबह 7 बजे से दोपहर 1 बजे के बीच और शाम 4 बजे से शाम 7:30 बजे के बीच आम लोगो व श्रद्धालुओं के लिये खुला रहता है।
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