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90 वर्षो से लगातार जल रही है यह चमत्कारी धूनि
भारत में कई महान संत हुए है उन्हीं में से एक है धूनीवाले दादाजी। श्रद्धालु इन्हें दादाजी धूनीवाले के नाम से भी जानते हैं। मध्यप्रदेश के खंडवा शहर में मौजूद दादा जी का मंदिर जो कि उनका समाधि स्थल है वह भक्तों के बीच काफी प्रसिद्ध है और लोगों की आस्था का मुख्य केंद्र भी है। दादाजी के भक्त सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी मौजूद है। कहते है की दादा जी के नाम पर भारत समेत विदेशों में 27 धाम है। सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि इन स्थानों पर दादाजी के समय से आज तक निरंतर धूनि जल रही है। दादा जी के समाधिस्थल पर भारी संख्या में उनके भक्त दर्शन करने जाते हैं।
गुरु पूर्णिमा वाले दिन भारी संख्या में श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने पहुंचते हैं। श्रद्धालु बताते हैं कि दादाजी माँ नर्मदा के बहुत बड़े भक्त थे। इसी कारण वह नर्मदा के किनारे ही भ्रमण और साधना किया करते थे। अपने अंतिम दिनों में वह खंडवा में मौजूद थे और वह यही समाधिलीन हुए थे। जिसके कारण भक्तों के बीच इस स्थान का महत्व और बढ़ जाता है।
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दादाजी जब भी ध्यान करते थे तो वह पवित्र अग्नि के समक्ष बैठकर ही ध्यान करते थे। दादा जी के भक्त बताते हैं कि वह अपने पास हमेशा एक धूनि जलायें रखते थे जिसके कारण उनका नाम दादाजी धूनीवाले वाले पड़ा था।
बताते हैं कि सन् 1930 से इस आश्रम में एक धूनि लगातार जल रहीं है। इस धूनि में ना केवल हवन सामग्री अर्पित की जाती है बल्कि नारियल, सूखे मेवा और सब कुछ अर्पित कर दिया जाता है। भक्तों का मानना है कि इस धूनि में ही बाबा की शक्ति समाई है। जिसके चलते धूनि वाले बाबा के भक्त यह भबूत प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
दादाजी धूनीवाले संत का कोई प्रमाणिक जीवन वृतांत मौजूद नहीं है। परन्तु उनकी महिमा का गुणगान किसी से छुपे भी नहीं है।
एक समय की बात है भवरलाल नाम के एक व्यक्ति राजस्थान के डिडवाना गांव से दादाजी से मिलने आए थे। मुलाकात के बाद वह दादा जी के ही होकर रह गए। उन्होंने अपने आप को दादाजी के चरणों में समर्पित कर दिया था और दादाजी ने उन्हें अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया था। जिसके बाद दादाजी ने उनका नाम हरिहरानंद रखा था। हरिहरानंद बहुत ही शांत प्रवृत्ति के इंसान थे और वह हमेशा दादाजी की सेवा में लगे रहते थे। उनके इस समर्पण और भक्ति भाव को देख कर भक्त उन्हें छोटे दादा जी के नाम से पुकारने लगे थे।
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जब दादाजी धूनीवाले समाधिलीन हो गए तो उसके बाद हरिहरानंदजी को उनका उत्तराधिकारी माना जाता था। सन 1942 में हरिहरानंद ने इस दुनिया को त्याग दिया। भक्तों ने छोटे दादाजी की समाधि बड़े दादाजी के पास ही बनाई थी।
भक्तों के बीच दादाजी की काफी मान्यता है। जिसके कारण श्रद्धालु यहाँ कई दिन का पैदल सफर तय करके पहुंचते हैं। भक्त मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कई जिलों से होते हुए पैदल निशान लेकर पहुंचते हैं। देश विदेश से दादा जी के भक्त यहाँ गुरु पूर्णिमा पर बड़ी संख्या में शीश नवाने आते हैं। उनके भक्त बताते हैं कि दादाजी के स्मरण से ही उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।
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