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Devi Maa chinnamasta: गुप्त नवरात्रि में जानें कैसे उत्पन्न हुई मां छिन्नमस्ता और इससे जुड़ी कथा

myjyotish Updated 14 Feb 2024 11:39 AM IST
Gupt Navratri
Gupt Navratri - फोटो : my jyotish

खास बातें

Devi Maa chinnamasta: गुप्त नवरात्रि में जानें कैसे उत्पन्न हुई मां छिन्नमस्ता और इससे जुड़ी कथा

Gupt Navratri : गुप्त नवरात्रि के दिन में देवी छिन्न मस्तिका का पूजन अत्यं विशेष माना गया है. 
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Devi Maa chinnamasta: गुप्त नवरात्रि में जानें कैसे उत्पन्न हुई मां छिन्नमस्ता और इससे जुड़ी कथा


Gupt Navratri : गुप्त नवरात्रि के दिन में देवी छिन्न मस्तिका का पूजन अत्यं विशेष माना गया है. आइये जान लेते हैं कैसे मां छिन्नमस्ता की उत्पत्ति हुई और क्या है इससे जुड़ी कथा. 

Maa chinnamasta : मां छिन्नमस्ता को समस्त प्रकार की चिंताओं को हर लेने वाली होती है. माता का प्रभाव जीवन को संपूर्ण रुप से सुख प्रदान करने वाला होता है. गुप्त नवरात्रि के समय पर माता का पूजन समस्त प्रकार के कष्टों से मुक्त कर देने वाला होता. 

गुप्त नवरात्रि के दौरान विशेष रुप से देवी के शक्ति रुप का पूजन अत्यंत विशेष होता है. इस दौरान माता के समस्त रुपों की पूजा होती है. दस महादेवियों की पूजा में से एक पूजा माता छिन्नमस्तिका का होता है. देवी छिन्नमस्ता का पूजन भक्तों को सुख प्रदान करता है. गुप्त नवरात्रि के दौरान मां छिन्नमस्ता की भी पूजा भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है. मां की पूजा सभी सिद्धियों को पूर्ण प्रदान करने वाली होती है. भक्ति के साथ मां की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. आइए जान लेते हैं मां छिन्नमस्ता की उत्पत्ति की कथा तथा देवी के कथा की महत्ता.

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माँ छिन्नमस्ता की उत्पत्ति की कथा

कथाओं के अनुसार एक बार मां भगवती अपनी सखियों के साथ मंदाकनी नदी में स्नान-ध्यान कर रही थीं. उसी समय माता की सहचरियों को बहुत भूख लगी. भूख की पीड़ा से दोनों साथियों के चेहरे पीले पड़ गये. जब उन दोनों को खाने के लिए कुछ नहीं मिला तो उन्होंने अपनी मां से उनके लिए भोजन की व्यवस्था करने का अनुरोध किया. सहेलियों की मांग सुनकर माता उन्हें थोड़ा धैर्य रखने को कहती हैं.

स्नान करने के बाद आपके भोजन की व्यवस्था का कहती हैं लेकिन वह तुरंत भोजन की व्यवस्था की माँग करने लगी. ऎसे में माँ भगवती ने तुरंत अपनी तलवार से उसका सिर काट दिया रक्त की तीन धाराएँ निकलीं. साथी दो धाराओं से भोजन लेने लगे. उसी समय माता स्वयं तीसरे रक्तधारा से रक्त पीने लगी. उसी समय मां छिन्नमस्तिका प्रकट हुईं.

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छिन्नमस्ता स्तोत्रम्

पार्वत्युवाच
 
नाम्नां सहस्रमं परमं छिन्नमस्ता-प्रियं शुभम्।
कथितं भवता शम्भो सद्यः शत्रु-निकृन्तनम्।।1।।
 
पुनः पृच्छाम्यहं देव कृपां कुरु ममोपरि।
सहस्र-नाम-पाठे च अशक्तो यः पुमान् भवेत्।।2।।
 
तेन किं पठ्यते नाथ तन्मे ब्रूहि कृपामय।
 
श्री सदाशिव उवाच
 
अष्टोत्तर-शतं नाम्नां पठ्यते तेन सर्वदा।
सहस्र्-नाम-पाठस्य फलं प्राप्नोति निश्चितम् .
ॐ अस्य श्रीछिन्नमस्ताष्टोत्तर-शत-नाअम-स्तोत्रस्य सदाशिव
ऋषिरनुष्टुप् छन्दः श्रीछिन्नमस्ता देवता
मम-सकल-सिद्धि-प्राप्तये जपे विनियोगः।
ॐ छिन्नमस्ता महाविद्या महाभीमा महोदरी .
चण्डेश्वरी चण्ड-माता चण्ड-मुण्ड्-प्रभञ्जिनी।।4।।
महाचण्डा चण्ड-रूपा चण्डिका चण्ड-खण्डिनी।
क्रोधिनी क्रोध-जननी क्रोध-रूपा कुहू कला ।।5।।
कोपातुरा कोपयुता जोप-संहार-कारिणी ।
वज्र-वैरोचनी वज्रा वज्र-कल्पा च डाकिनी।।6।।
डाकिनी कर्म्म-निरता डाकिनी कर्म-पूजिता।
डाकिनी सङ्ग-निरता डाकिनी प्रेम-पूरिता।।7।।
खट्वाङ्ग-धारिणी खर्वा खड्ग-खप्पर-धारिणी ।
प्रेतासना प्रेत-युता प्रेत-सङ्ग-विहारिणी ।।8।।
 छिन्न-मुण्ड-धरा छिन्न-चण्ड-विद्या च चित्रिणी ।
घोर-रूपा घोर-दृष्टर्घोर-रावा घनोवरी ।।9।।
योगिनी योग-निरता जप-यज्ञ-परायणा।
योनि-चक्र-मयी योनिर्योनि-चक्र-प्रवर्तिनी ।।10।।
योनि-मुद्रा-योनि-गम्या योनि-यन्त्र-निवासिनी ।
यन्त्र-रूपा यन्त्र-मयी यन्त्रेशी यन्त्र-पूजिता ।।11।।
कीर्त्या कपर्दिनी: काली कङ्काली कल-कारिणी।
आरक्ता रक्त-नयना रक्त-पान-परायणा ।।12।।
भवानी भूतिदा भूतिर्भूति-दात्री च भैरवी ।
भैरवाचार-निरता भूत-भैरव-सेविता।।13।।
भीमा भीमेश्वरी देवी भीम-नाद-परायणा ।
भवाराध्या भव-नुता भव-सागर-तारिणी ।।14।।
भद्रकाली भद्र तनुर्भद्र-रूपा च भद्रिका।
भद्ररूपा महाभद्रा सुभद्रा भद्रपालिनी।।15।।
सुभव्या भव्य-वदना सुमुखी सिद्ध-सेविता ।
सिद्धिदा सिद्धि-निवहा सिद्धासिद्ध-निषेविता।।16।।
शुभदा शुभगा शुद्धा शुद्ध-सत्वा-शुभावहा ।
श्रेष्ठा दृष्टिमयी देवी दृष्ठि-संहार-कारिणी।।17।।
शर्वाणी सर्वगा सर्वा सर्व-मङ्गल-कारिणी ।
 शिवा शान्ता शान्ति-रूपा मृडानी मदनातुरा ।।18।।
इति ते कथितं देवि स्तोत्रं परम-दुर्लभम्।
गुह्याद्-गुह्यतरं गोप्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ।।19।।
किमत्र बहुनोक्तेन त्वदग्रं प्राण-वल्लभे।
मारणं मोहनं देवि ह्युच्चाटनमतः परमं .।।20।।
स्तम्भनादिक-कर्म्माणि ऋद्धयः सिद्धयोऽपि च।
त्रिकाल-पठनादस्य सर्वे सिध्यन्त्यसंशयः ।।21।।
महोत्तमं स्तोत्रमिदं वरानने मयेरितं नित्य मनन्य-बुद्धयः।
पठन्ति ये भक्ति-युता नरोत्तमा भवेन्न तेषां रिपुभिः पराजयः ।।22।।
 
!! इति श्रीछिन्नमस्तका स्तोत्रम् !!
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