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Home ›   Blogs Hindi ›   Dev Uthani Ekadashi: Why does Dev Uthani Ekadashi wake up at this time? Know its importance from Lord Shri Vis

Dev Uthani Ekadashi : देवउठनी एकादशी आखिर क्यों जागते हैं इस समय भगवान श्री विष्णु योग निद्रा से जाने इसका महत

my jyotish expert Updated 23 Nov 2023 11:32 AM IST
Dev Uthani Ekadashi
Dev Uthani Ekadashi - फोटो : my jyotish
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देव उठनी एकादशी का समय एक बेहद ही विशेष खास समय माना गया है. इसका संबंध श्री विष्णु के जागरण से माना गया है. शास्त्रों के अनुसार इस समय पर भगवान चार माह की निद्रा से जागृत होते हैं तथा सृष्टि का संचालन पुन: प्राप्त करते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं तो इसी समय के साथ मांगलिक कार्य शुरू हो जाते है.  

जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है

देवउठनी एकादशी विशेष कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे. उस दिन नगर में सभी लोग एकादशी का व्रत करते थे कोई भी उस दिन पशु-पक्षी भी अन्न का एक दाना भी नहीं ग्रहण करते थे. एक बार उस राज्य में एक व्यक्ति राजा के दरबार में पहुंचा और काम पाने की इच्छा जाहिर करता है.

तब राजा ने उसे कहा की वह उसे कार्य तो दे सकता है लेकिन शर्त यह है कि एकादशी व्रत के दिन भोजन नहीं मिल पाए और उसे इस व्रत को करना होगा. उस व्यक्ति ने राजा की कहीं बात को मान लिया किंतु जब एकादशी का व्रत आया तो वह इस व्रत को न कर पाया. वह राजा के सामने गिड़गिड़ाने लगा कि अगर वह खाना नहीं खाएगा तो मर जाएगा. 
  
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राजा ने उस की दशा देख कर उसे उसे भोजन देने का आदेश दिया. वह व्यक्ति नदी तट पर पहुंचा और सबसे पहले स्नान कियाभोजन पका कर भगवान को अर्पित किया. उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान भक्त के साथ भोजन करने लगे. जब अगली एकादशी आई तो व्यक्ति ने उसने राजा से दोगुना भोजन देने को कहा. पहली एकादशी को वह भूखा रहा क्योंकि उस दिन भगवान ने भी उसके साथ भोजन किया था. इस कारण से अधिक भोजन की आवश्यकता है

राजा उसकी बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गया. इस पर सेवक ने राजा से कहा कि यदि आपको विश्वास नहीं है तो आप स्वयं चलकर देख सकते हैं. तब राजा उसके साथ जाते हैं  सेवक नदी में स्नान करन के बाद भोजन बना कर प्रभु को पुकारता है

  लेकिन इस बार भगवान नहीं आते तब उसने कहा कि अगर आप नहीं आओगे तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगा और तब भगवान ने प्रकट होते हैं. यह देखकर राजा को पता चला कि व्रत का फल मन की पवित्रता से ही मिलता है. उसके बाद राजा भी सच्चे मन से व्रत करने लगा. जीवन के अंत में उन्हें स्वर्ग की भी प्राप्ति हुई.
 
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