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जीवन में शुभता का वास होता है. स्वच्छ हृदय एवं शुभ विचार विकसित होते हैं महाभारत काल के दौरान, भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को इस एकादशी के महत्व के बारे में बताया था. साथ ही, उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति इस व्रत को निष्ठा और पूरे मन से करता है, वह अपने जीवन के सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है. तो आइए इस शुभ दिन से संबंधित कुछ विशेष जानकारी पाते हैं.
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हरिप्रबोधिनी एकादशी का महत्व
एकादशी के सभी व्रतों का हिंदू धर्म में अपना-अपना महत्व है. लेकिन इन सबके बीच हरिप्रबोधिनी एकादशी का व्रत न केवल स्वयं को बल्कि दूसरों को भी लाभ पहुंचाता है. इस एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. यह व्रत व्यक्ति को हृदय से शुद्ध होने में मदद करता है और उसे सभी पापों से मुक्त करता है. जातक माता-पिता के साथ-साथ अपने प्रियतम के साथ सभी पापों से मुक्त हो जाता है. इस व्रत से अश्वमेध यज्ञ और सूर्य यज्ञ के समान फल की वर्षा होती है.
इस व्रत को करने से नव ग्रहों के सभी बुरे प्रभाव समाप्त हो जाते हैं और भक्त को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है. यदि कोई व्यक्ति कार्तिक माह में अनजाने में या अनजाने में कोई गलती करता है, तो उसे इस दिन व्रत का पालन करने से उसे अपनी गलतियों की क्षमा प्राप्त होती है.
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हरिप्रबोधिनी एकादशी पूजा-विधि
जो लोग हरिप्रबोधिनी एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें एक दिन पहले यानी दशमी तिथि से अनुष्ठान का पालन करना होता है. दशमी के दिन गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और दाल जैसे सात प्रकार के अनाज से बचना चाहिए. एकादशी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर हाथ में जल रखकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए संकल्प लेने के बाद घटस्थापना स्थापना करें. घटस्थापना करने के लिए कलश पर भगवान विष्णु की मूर्ति को स्थापित करना चाहिए.
भगवान विष्णु की पूरे मन से पूजा करते हुए धूप-दीप, नारियल, फल, फूल आदि वस्तुओं को अर्पित करना चाहिए. भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी का एक पत्ता अवश्य रखना चाहिए तथा तुलसी पूजा करनी चाहिए.