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Dahi Handi 2023 Date:  दही हांडी कब ? जानें डेट और इसका महत्व

MyJyotish Expert Updated 31 Aug 2023 01:31 PM IST
Dahi Handi 2023 Date:  दही हांडी कब ? जानें डेट और इसका महत्व
Dahi Handi 2023 Date:  दही हांडी कब ? जानें डेट और इसका महत्व - फोटो : my jyotish
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दही हांडी का पर्व भगवान श्री कृष्ण के जन्मोतस्व के दौरान मनाया जाता है. धूमधम से मनाया जाने वाला यह उत्सव भक्तों के बीच काफी उत्साह को दर्शाता है. भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जब भगवान का अवतरण होता है तो उसकी खुशी हेतु इस उत्सव का आयोजन भी किया जाता है. यह त्यौहार कृष्ण जन्माष्टमी की खुशी एवं प्रसन्नता का प्रतीक भी है. देश के कुछ भागों में इस उत्सव की धूम देखते ही बनती है. इसे गोपाला के नाम से भी जाना जाता है. दही हांडी मनाने की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है. यह त्यौहार कृष्ण की बाल लीलाओं का प्रतीक माना जाता है. इस समय पर भगवान के बालपन के स्वरुप को देखा जाता है. दही हांडी मुख्य रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में बेहद ही विशाल स्तर पर मनाते हुए देखा जा सकता है. आज के समय में भी यह पूरे भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. आइए जानते हैं इस साल दही हांडी उत्सव कब मनाया जाएगा और इसका महत्व.

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दही हांडी उत्सव समय 
इस साल कृष्ण जन्माष्टमी 6 सितंबर 2023 को मनाई जाएगी. अगले दिन 7 सितंबर 2023 को दही हांडी उत्सव मनाया जाएगा.  दही हांडी मनाने की परंपरा भक्तों के द्वारा प्राचीन काल से ही चली आ रही है.  दही हांडी उत्सव का संबंध श्री कृष्ण की नटखट लीलाओं से है. भगवान कृष्ण को बचपन में दही और मक्खन बहुत प्रिय था अत: आज भी उनके उस रुप का पूजन इस प्रकार से भी किया जाता है. 

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दही हंडी का महत्व 
दही हांडी उत्सव में भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरुप कान्हा की पूजा की जाती है. हांडी मिट्टी से बना एक गोल पात्र होता है और उत्सव के लिए इस हांडी में दही और मक्खन भरा जाता है और फिर इसे किसी ऊंचे स्थान पर लटका दिया जाता है. लड़के और लड़कियों का एक समूह गोपाल बनकर इस खेल में भाग लेते हैं तथा मटकी फोड़ते हैं. इसे एक प्रतियोगिता के रूप में भी आयोजित किया जाता है. पौराणिक कथाओं में कान्हा अपने मित्रों के साथ माखन चुराते थे तब कई तरह की लीलाओं को किया करते थे. यही कारण है कि कान्हा माखन-चोर के नाम से प्रसिद्ध हुए. बाल गोपाल की इस हरकत से परेशान होकर गोपियाँ दही और मक्खन से भरे बर्तन को ऊँचे स्थान पर लटकाने लगीं. भगवान कृष्ण की दही चुराने की यह बचपन की लीला आज भी लोककथाओं के द्वारा उत्सव रुप में आज भी मौजूद है. 
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