Chhath puja 2023
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छठ के त्यौहार को लेकर जहां भक्तों में अलग ही उत्साह देखने को मिलता है वहीम इसकी कथाएं भी उस भक्ति को और भी प्रबलता देने वाली होती है. कार्तिक माह में आने वाला छठ पर अपने आप में कई पौराणिक कथाओं को समेटे हुए है. छठ त्योहार शुरू होने के साथ ही आरंभ होता है इससे जुड़े परंपराओं एवं कथाओं के पालन का समय. छठ पर्व मुख्य रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड का लोक पर्व है जो आज के संदर्भ में संपूर्ण भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है. धूमधाम से मनाया जाने वाला सूर्योपासना के इस महापर्व से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं. आइए जानते हैं छठ से संबंधित कथाओं के बारे में.
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महाभारत से जुड़ा छठ पर्व
छठ पर्व की कथा का संबंध महाभारत काल से भी प्राप्त होता है. इस व्रत के दौरान जहां पांडवों को राजगद्दी का सुख प्राप्त हो पाया है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. सूर्यपुत्र कर्ण ने सबसे पहले सूर्य देव की पूजा शुरू की थी. कर्ण भगवान सूर्य का बहुत बड़ा भक्त था. वह जल में खड़े होकर सूर्य उपासना एवं सूर्य को अर्घ्य देते थे. सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना. आज भी छठ में अर्घ्य दान करने की वही परंपरा प्रचलित है.छठ पर्व को लेकर एक और कहानी है. इसके अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तो द्रौपदी ने छठ व्रत रखा. उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राज्य वापस मिल गया.
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प्रियंवद और मालिनी की कहानी
पुराणों के अनुसार राजा प्रियंवद की कोई संतान नहीं थी. तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया और यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को दी. इससे उन्हें एक बेटा हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ. प्रियंवद अपने पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे. उसी समय भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और बोलीं मैं सृष्टि की मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण षष्ठी कहलाती हूं. राजा, आप मेरी पूजा करें तथा आपकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंगी. राजा ने पुत्र की कामना से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को की गई थी तब से इस दिन को संतान की कामना एवं सुख हेतु उत्तम माना गया है.