काशी दुर्ग विनायक मंदिर में पाँच ब्राह्मणों द्वारा विनायक चतुर्थी पर कराएँ 108 अथर्वशीर्ष पाठ और दूर्बा सहस्त्रार्चन, बरसेगी गणपति की कृपा ही कृपा -10 सितम्बर, 2021
चंद्र दर्शन होता है निषेध
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा देखना अशुभ माना जाता है. इस चतुर्थी को कलंक चौथ के नाम से भी जाना जाता है, अपने नाम अनुसार ही यह चंद्रमा को देखने के कारण अपमान और मिथ्या कलंक को देने वाली भी होती है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा को देखने के कारण भगवान कृष्ण को भी कलंक का श्राप झेलना पड़ा था. इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है. भगवान के जन्मोत्सव के लिए अनेकों तैयारियां होती है. इस शुभ दिन भक्त प्रात:काल समय उठकर स्नान करते हैं इस दिन गंगा स्नान इत्यादि का भी बहुत महत्व है. भगवान जी को सिंदूर अर्पित करना शुभ होता है, संध्या समय चंद्रमा के बिना देखे जल अर्पित किया जाता है और तभी पूजा संपूर्ण होती है.
कलंक चौथ की पौराणिक कथा
द्वारकापुरी में सत्रजीत नाम का शख्स रहता है. वह भगवान सूर्य के प्रति अत्यंत समर्पित था, भगवान सूर्य उनकी भक्ति से प्रभावित हुए और उन्हें एक अमूल्य मणि प्रदान करते हैं. इस मणि के प्रभाव के कारण, सत्रजित किसी भी चीज से नहीं डरते थे और सभी सुखों को प्राप्त करने में सक्षम होते हैं. एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने राजा उग्रसेन को वो मणि प्रदान करने की बात सोचते हैं लेकिन सत्राजित इस बात को जान कर उस मणि को अपने भाई प्रसेन को दे देता है. एक समय प्रसेन वन में शिकार करने जाते हैं तो वहां शेर के प्रहार से उनकी मृत्यु हो जाती है उसी शेर से वो मणि जांबवंत प्राप्त करते हैं जब लोगों को मणि के खोने का पता चलता है तो वह कृष्ण को प्रसेन का हत्यारा समझ बैठते हैं यह बात जब श्री कृष्ण को पता चलती है तो वह श्रीकृष्ण इस मिथ्या कलंक को दूर करने के लिए प्रसेन की तलाश में निकल जाते हैं. भगवान कृष्ण को प्रसेन का शव, एक शेर का सिर और पैरों के निशान मिलते हैं वही उनकी मुलाकात जाम्बवंत से होती है, जाम्बवंत सारी कहानी श्री कृष्ण को कह सुनाते हैं और अपनी पुत्री से विवाह पश्चात उन्हें वो मणि वापस कर देते हैं .जब प्रजा को सच्चाई का पता चलता है तो वह क्षमा मांगती है. माना जाता है की कृष्ण को ये दोष इस कारण सहना पड़ा क्योंकि उन्होंने भादो माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के चंद्रमा को देखा था.
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