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Home ›   Blogs Hindi ›   Chaitra Sankashti Vrat: Enhance joy and prosperity with Ganpati Puja

Chaitra Sankashti Chaturthi Vrat : चैत्र संकष्टी चतुर्थी, गणपति पूजा के वक्त पढ़ें यह स्त्रोत, सुख-समृद्धि म

Acharya Rajrani Sharma Updated 26 Mar 2024 10:13 AM IST
sankashti chaturthi
sankashti chaturthi - फोटो : google

खास बातें

sankashti chaturthi dates चैत्र मास की संकष्टी चतुर्थी का व्रत 28 मार्च के दिन रखा जाएगा. sankashti chaturthi march माह की दूसरी चतुर्थी होगी. sankashti chaturthi pooja कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश पूजन किया जाता है. 
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sankashti chaturthi dates चैत्र मास की संकष्टी चतुर्थी का व्रत 28 मार्च के दिन रखा जाएगा. sankashti chaturthi march माह की दूसरी चतुर्थी होगी. sankashti chaturthi pooja कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश पूजन किया जाता है. गणेश चतुर्थी पूजा हेतु यह दिन होता है विशेष. संकष्टी चतुर्थी मंत्र देती है शुभ फल. गणेश चतुर्थी का दिन भगवान श्री गणेश पूजन के साथ साथ मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है. 

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चैत्र माह की गणेश चतुर्थी पूजन महत्व 

हर माह आने वाली चतुर्थी तिथि के दिन ganesh puja भगवान गणेश की विशेष पूजा करने की परंपरा है. गणपति, स्कंद और ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इन तिथियों पर lord ganesh गणेश जी की विशेष पूजा के साथ व्रत रखने से परेशानियां दूर होती हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं. ganesh chaturthi puja vidhi में गणेश स्त्रोत का पाठ उत्तम फल प्रदान करता है. आइये जान लेते हैं चैत्र माह की गणेश चतुर्थी के दिन गणेश पूजन एवं गणपति मंत्र chaturthi mantra स्त्रोत 
 

चैत्र माह की चतुर्थी देगी हर संकट से मुक्ति 

चैत्र माह की संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है. इस दिन सभी कष्टों को दूर करने वाला माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान गणेश की पूजा करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है. इस दिन व्रत करने से जीवन साथी की लंबी उम्र और सौभाग्य में वृद्धि होती है. भक्त शुभ कामना के साथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखते हैं. इस गणपति पूजन में दिन भर व्रत रखा जाता है और शाम को भगवान गणेश की पूजा करती हैं.

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गणपति अथर्वशीर्ष - ॐ नमस्ते गणपतये


ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाग्ँसस्तनूभिः ।
व्यशेम देवहितं यदायूः ।
  
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स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः ।स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ ॐ नमस्ते गणपतये ॥१॥

त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि । त्वमेव केवलं कर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि । त्वमेव केवलं हर्ताऽसि ।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि । त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ॥२॥

ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ॥३॥
अव त्वं माम् । अव वक्तारम् ।
अव श्रोतारम् ।अव दातारम् ।
अव धातारम् । अवानूचानमव शिष्यम् ।

अव पुरस्तात् । अव दक्षिणात्तात् ।
अव पश्चात्तात् । अवोत्तरात्तात् ।
अव चोर्ध्वात्तात् । अवाधरात्तात् ।
सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात् ॥४॥

त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः । त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः ।
त्वं सच्चिदानन्दाऽद्वितीयोऽसि । त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि ।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥५॥
 
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सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते । सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति ।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति । सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति ।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः । त्वं चत्वारि वाक् {परिमिता} पदानि ।
त्वं गुणत्रयातीतः । त्वं अवस्थात्रयातीतः ।
त्वं देहत्रयातीतः । त्वं कालत्रयातीतः ।

त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् । त्वं शक्तित्रयात्मकः ।
त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् ।

त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्म भूर्भुवस्सुवरोम् ॥६॥

गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादींस्तदनन्तरम् ।
अनुस्वारः परतरः । अर्धेन्दुलसितम् ।
तारेण ऋद्धम् । एतत्तव मनुस्वरूपम् ॥७॥

गकारः पूर्वरूपम् । अकारो मध्यरूपम् ।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् ।बिन्दुरुत्तररूपम् ।
नादस्संधानम् । सग्ंहिता संधिः ॥८॥

सैषा गणेशविद्या । गणक ऋषिः ।
निचृद्गायत्रीच्छन्दः । गणपतिर्देवता ।
ॐ गं गणपतये नमः ॥९॥

एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि ।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥१०॥

एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम् ।
रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम् ॥
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम् ।
रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैस्सुपूजितम् ॥

भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम् ।
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम् ।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः ॥११॥

नमो व्रातपतये । नमो गणपतये ।नमः प्रमथपतये ।
नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय
विघ्ननाशिने शिवसुताय वरदमूर्तये नमः ॥१२॥

एतदथर्वशीर्षं योऽधीते स ब्रह्मभूयाय कल्पते ।
स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते ।स सर्वत्र सुखमेधते । स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते ।

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति ।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति ।
सायं प्रातः प्रयुञ्जानो पापोऽपापो भवति ।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति ।
धर्मार्थकाममोक्षं च विन्दति ॥१३॥

इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम् ।
यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति ।
सहस्रावर्तनाद्यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत् ॥१४॥

अनेन गणपतिमभिषिञ्चति स वाग्मी भवति ।
चतुर्थ्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति ।
इत्यथर्वणवाक्यम् ।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यान्न बिभेति कदाचनेति ॥१५॥

यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति ।
यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति ।
स मेधावान् भवति ।
यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छितफलमवाप्नोति ।
यस्साज्यसमिद्भिर्यजति स सर्वं लभते स सर्वं लभते ॥१६॥

अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग् ग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति ।
सूर्यग्रहेमहानद्यां प्रतिमासन्निधौ वा जप्त्वा सिद्धमन्त्रो भवति
महाविघ्नात् प्रमुच्यते ।
महादोषात् प्रमुच्यते ।
महाप्रत्यवायात् प्रमुच्यते ।
स सर्वविद् भवति स सर्वविद् भवति ।
य एवं वेद ।
इत्युपनिषत् ॥१७॥

ॐ शान्तिश्शान्तिश्शान्तिः ॥
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