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Bhishma Dwadashi : भीष्म द्वादशी के दिन पितरों का पूजन करने से मिलती है हर प्रकार के दोष से मुक्ति

Acharyaa RajRani Updated 20 Feb 2024 12:18 PM IST
भीष्म द्वादशी
भीष्म द्वादशी - फोटो : google

खास बातें

Bhishma Dwadashi : भीष्म द्वादशी के दिन पितरों का पूजन करने से मिलती है हर प्रकार के दोष से मुक्ति 

Bhishma Dwadashi Time माघ शुक्ल द्वादशी, के समय को भीष्म द्वादशी के रुप में पूजा जाता है. इस दिन किया जाने वाला पितृ पूजन हर प्रकार के कष्ट को दूर करने में सहायक होता है.

Bhishma Dwadashi Significance भीष्म द्वादशी का समय पितामह भीष्म के त्याग को दर्शाता है. इस दिन पितरों और भीष्म पितामह, के लिए पितृ तर्पण और पूजा की जाती है. 
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Bhishma Dwadashi : भीष्म द्वादशी के दिन पितरों का पूजन करने से मिलती है हर प्रकार के दोष से मुक्ति 


Bhishma Dwadashi Time माघ शुक्ल द्वादशी, के समय को भीष्म द्वादशी के रुप में पूजा जाता है. इस दिन का धार्मिक महत्व प्राचीन काल से रहा है. मान्यताओं के अनुसार इस दिन किया जाने वाला पितृ पूजन हर प्रकार के कष्ट को दूर करने में सहायक होता है.

Bhishma Dwadashi Significance . मान्यता है कि भीष्म द्वादशी के दिन पितरों के लिए पितृ तर्पण और पितृ पूजा करने से बहुत पुण्य मिलता है. इस दिन भीष्म के लिए पितृ तर्पण भी करते हैं जिसके द्वारा शुभ फलों की प्राप्ति संभव होती है.  भीष्म द्वादशी का समय पितामह भीष्म के त्याग को दर्शाता है. इस दिन पितरों और भीष्म पितामह, के लिए पितृ तर्पण और पूजा की जाती है. 

भीष्म द्वादशी को माघ शुक्ल द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इसी दिन पांडवों ने भीष्म का अंतिम संस्कार किया था क्योंकि भीष्म ने विवाह नहीं किया था अत: उनके कोई संतान नहीं थी. उनके तप एवं त्याग के कारण ही भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था. भीष्म पितामह को यह वरदान प्राप्त था कि वह अपनी मृत्यु का दिन चुन सकते थे अत: जब उन्होंने प्राणों का त्याग किया तब पांडवों ने गंगा के तट पर भीष्म का अंतिम संस्कार किया और उन्हें मुक्ति प्राप्त हुई.

भीष्म द्वादशी का धार्मिक महत्व


भीष्म द्वादशी माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है. ग्रंथों के अनुसार, महाभारत काल से संबंधित यह घटना भीष्म पीतामह से जुड़ी है. इसी कारण इस पर्व को भीष्म द्वादशी के नाम से मनाया जाता है. कथाओं के अनुसार भीष्म, जब महाभारत के युद्ध में घातक रूप से घायल थे और तीरों की शय्या पर लेटे हुए थे, तब प्राण छोड़ने का फैसला सूर्य के उत्तरायण होने को चुना. भीष्म को यह वरदान प्राप्त था कि वह अपनी मृत्यु का दिन चुन सकते हैं.

ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपने शरिर का त्याग कर दिया तब द्वादशी के दिन पांडवों ने भीष्म पितामह का अंतिम संस्कार किया था. मान्यता है कि भीष्म द्वादशी के दिन पितरों के लिए पितृ तर्पण और पितृ पूजा करने से बहुत पुण्य मिलता है. इस दिन भीष्म के लिए पितृ तर्पण भी करते हैं जिसके द्वारा शुभ फलों की प्राप्ति संभव होती है. 

भीष्म द्वादशी की कथा  
भीष्म अष्टमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है. इसके चार दिन बाद भीष्म द्वादशी मनाई जाती है. धार्मिक ग्रंथों में माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी और द्वादशी को श्राद्ध में भीष्म पितामह की पूजा करने का नियम है. आइए जानते हैं भीष्म द्वादशी की कथा. महाभारत काल में भीष्म पितामह युद्ध क्षेत्र में कौरवों की ओर से युद्ध कर रहे थे. भीष्म पितामह को हराना आसान नहीं था. पांडवों को भीष्म पितामह की कमजोरी का पता नहीं था.ऐसा कहा जाता है कि भीष्म पितामह ने किसी स्त्री पर प्रहार नहीं किया था.

भीष्म पितामह के सामने यदि कोई स्त्री खड़ी हो जाये तो भीष्म पितामह आक्रमण नहीं करते थे. यह जानकर पांडवों ने शिखंडी को भीष्म पितामह के सामने खड़ा कर दिया. युद्धभूमि में शिखंडी को बाण के निशान पर खड़ा देखकर भीष्म पितामह ने उस पर आक्रमण नहीं किया. अर्जुन ने भीष्म पितामह के शरीर पर बाणों की वर्षा कर दी. इससे भीष्म पितामह घायल हो गये, सूर्य उत्तरायण हुआ तो अष्टमी तिथि को भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागे. प्राचीन काल से ही माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म पितामह की पूजा की जाती है.इस दिन भीष्म के लिए पितृ तर्पण भी करते हैं जिसके द्वारा शुभ फलों की प्राप्ति संभव होती है. 

 
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