जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
भीष्म पंचक महत्व और कथा
भीष्म पंचक का आरंभ या कहें शुरुआत महाभारत काल से मानी गई है. पितामह भीष्म के नाम पर इस व्रत का नाम भीष्म पंचक व्रत रखा गया. कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब पितामह भीष्म सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशय्या पर लेटे हुए थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को उनसे शिक्षा लेने के लिए भेजा था.
तब भीष्म ने पांच दिनों तक पांडवों को धर्म, कर्म, राजनीती और अध्यात्मिकता के संबंध में जो ज्ञान दिया वहीं भीष्म पंचक के रुप में जाना गया है. इस कारण से कार्तिक माह में भीष्म पंचक व्रत को करने से सभी प्रकार के पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. इस वर्ष भीष्म पंचक का उत्सव 25 नवंबर कार्तिक एकादशी से 30 नवंबर कार्तिक पूर्णिमा तक मनाया जाएगा.
भीष्म पंचक महात्म्य
कार्तिक माह में आने वाले भीष्म पंचक काफी शुभ होते हैं. इन पांच दिनों को बेहद ही पुण्यफल पाने वाला समय माना गया है. यह भीष्म पंचक भक्तों को कार्तिक माह का संपूर्ण एवं शुभ फल तो देते ही हैं साथ में जो भक्त इन दिनों में व्रत, जप, पूजा, पाठ, अनूष्ठान एवं अन्य प्रकार की धार्मिक कृत्यों को करते हैं उन्हें अक्ष्य फलों की प्राप्ति होती है. जन्मों जन्मों के पाप कर्म भी इन पंचकों में किए जाने वाले धार्मिक कार्यों द्वारा शांत होते हैं.
शीघ्र धन प्राप्ति के लिए कराएं कुबेर पूजा
कार्तिक माह में आने वाले पंचक बेहद ही विशेष माने गए हैं. इन पंचक को भीष्म पंचक नाम से जाना जाता है. यह पांच दिन धर्म कर्म के कार्यों हेतु बहुत ही विशेष होते हैं. भीष्म पंचक का आरंभ कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से होता है और कार्तिक पूर्णिमा तक यह रहते हैं. एकादशी से पूर्णिमा तक के ये पांच दिन काफी महत्व रखते हैं. इन पांच दिनों दीपदान, व्रत, जप एवं स्नान दान पुण्य के कार्य लगातार जारी रहते हैं.