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Basant Panchami 2024: बसंत पंचमी के दिन शुभ मूहुर्त पर इस एक कार्य से मिलेगी सफलता

Acharya Rajrani Sharma Updated 14 Feb 2024 10:01 AM IST
Basant Panchami
Basant Panchami - फोटो : google

खास बातें

Basant Panchami 2024: बसंत पंचमी के दिन शुभ मूहुर्त पर इस एक कार्य से मिलेगी सफलता 

Basant Panchami 2024: बसंत पंचमी ज्ञान के प्रकाश का समय जब हर कोई देवी के पुजन द्वारा प्राप्त कर सकता है बौद्धिकता एवं कौशलता का गुण.
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Basant Panchami 2024: बसंत पंचमी के दिन शुभ मूहुर्त पर इस एक कार्य से मिलेगी सफलता 


Basant Panchami 2024: बसंत पंचमी ज्ञान के प्रकाश का समय जब हर कोई देवी के पुजन द्वारा प्राप्त कर सकता है बौद्धिकता एवं कौशलता का गुण. बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती के पूजन एवं मंत्र जाप से मिलती है सुख समृद्धि. 

Basant Panchami Celebrations: बसंत पंचमी का पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है. इस दिन को देश भर में उत्साह एवं भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है. आइये जान लें इस दिन किस एक काम को करने से मिलती है सफलता है. 

बसंत पंचमी का समय अत्यंत शुभ दिनों में से एक माना गया है. इस दिन का हर प्रहर ही अपने आप में खास माना गया है. इस दिन को इतना शुभ कहा गया है कि इस दिन किसी अन्य मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती है.

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बसंत पंचमी है अत्यंत शुभ मुहूर्त Basant Panchami Shubh Muhurat  

बसंत पंचमी के दिन कोई भी कार्य को करने हेतु शुभता प्राप्त होता है. इसी कारण इस दिन बहुत विशेष माना गया है. इस कारण इस दिन अबूझ मुहूर्त के रुप में जाना गया है. आइये जान लेते हैं पंचमी के दिन सरस्वती चालिसा का पाठ दूर करेगा सभी कष्ट और मिलेगी हर कार्य में सफलता.
 
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बसंत पंचमी 2024 चालिसा पाठ 

ॐ ।। श्री सरस्वती चालीसा ।। ॐ

जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥

सरस्वती चालीसा चौपाई

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥

जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुजधारी माता। सकल विश्व अंदर विख्याता॥

जग में पाप बुद्धि जब होती। जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥
तबहि मातु ले निज अवतारा। पाप हीन करती महि तारा॥

वाल्मीकिजी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामायण जो रचे बनाई। आदि कवी की पदवी पाई॥

कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्धाना। भये और जो ज्ञानी नाना॥

तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा। केवल कृपा आपकी अम्बा॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी॥

पुत्र करै अपराध बहुता। तेहि न धरइ चित्त सुंदर माता॥
राखु लाज जननी अब मेरी। विनय करूं बहु भांति घनेरी॥

मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
मधु कैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥

समर हजार पांच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥
मातु सहाय भई तेहि काला। बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता। छण महुं संहारेउ तेहि माता॥

रक्तबीज से समरथ पापी। सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा। बार बार बिनवउं जगदंबा॥

जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा। छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥
भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई॥

एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा। सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना॥

विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानव भक्षी॥

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता॥

नृप कोपित जो मारन चाहै। कानन में घेरे मृग नाहै॥
सागर मध्य पोत के भंगे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥

भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करइ न कोई॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥
करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥

धूपादिक नैवेद्य चढावै। संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करै हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥

बंदी पाठ करें शत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥
मोहे जान अज्ञनी भवानी। कीजै कृपा दास निज जानी ॥

॥ दोहा ॥
माता सूरज कांति तव, अंधकार मम रूप। डूबन ते रक्षा करहु, परूं न मैं भव-कूप॥
बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि, सुनहु सरस्वति मातु। मुझ अज्ञानी अधम को, आश्रय तू ही दे दातु ॥॥
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