वसंत ऋतु के समय प्रकृति नया रूप धारण करती है। प्रतीत होता है कि जैसे प्रकृति पुराने वस्त्र उतार कर नए धारण कर रही हो। इसलिए वसंत पंचमी के समय रंगों से त्योहार का आरम्भ करते हैं। वसंत पंचमी का समय बहुत ही शुभ माना जाता है। इसलिए इसे अबूझ मुहूर्त भी कहते हैं। सरस्वती माँ का पूजन दीपावली व नवरात्रि में भी होता है, परन्तु वसंत पंचमी को सरस्वती पूजन का अधिक महत्व होता है।
वसंत का महत्वः-
मान्यता है कि इस दिन अपनी पत्नी रति के साथ कामदेव पृथ्वी पर अपने मित्र वसंत से मिलने आते हैं।
देवी सरस्वती के जन्म का उद्देश्य भी संसार में काम और ज्ञान का संतुलन बनाए रखना है। एक बार ब्रह्मा जी की मूक रचना बग़ैर आवाज के उदास सी हो गई तब वसंत पंचमी को ब्रह्माजी ने द्वारा शारदा के दर्शन करने के बाद माता ने वीणा के सुरों से मौन बने लोक में स्वर भर दिए।
देवी सरस्वती की उत्पत्तिः-
सृष्टि रचते समय योनि की रचना करने के पश्चात् भी ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं हुए। तब ब्रह्मा जी द्वारा उनके कमंडल से कुछ जल पृथ्वी पर छिड़का गया जिससे एक चारभुजी स्त्री प्रकट हुई। उनके एक हाथ वीणा थी तो दूसरे हाथ से वरदान देने की मुद्रा बनी हुई थी। इस स्त्री यानी माँ सरस्वती के वीणा बजाते ही समस्त सृष्टि नाद हुआ और सृष्टि स्वरों से गूंज उठी। इन्हीं संगीत की देवी सरस्वती को वागीश्वरी देवी, माँ भगवती, शारदा माता, वीणावादनी और वाग्देवी आदि नामों से जाना जाता है।
माना जाता है कि इसी दिन माता सरस्वती प्रकट हुई थी, इसलिए वसंत पंचमी उन्हें समर्पित त्योहार है। पुराणों में भी लिखा है कि भगवान कृष्ण के वरदान के आधार पर वसंत पंचमी पर देवी सरस्वती पूज्य हैं।
विशेष योगः-
गुप्त नवरात्रि के साथ ही इस बार वसंत पंचमी पर सिद्धि योग बनने जा रहा है, जो विद्यार्थियों, साधकों, भक्तों और ज्ञान प्राप्ति की चाहत रखने वालों हेतु बेहद शुभ होगा। बुध ग्रह बुद्धि का कारक है। चतुर्थी तिथि यानी की वसंत पंचमी के एक दिन पूर्व बुध ग्रह मार्गी होने से बुद्धादित्य योग का प्रभाव भी होगा।
पूजन उपाय व मंत्रः-
श्री गणेश की पूजा और कलश स्थापना के पश्चात् ही कोई पूजा आरंभ करनी चाहिए। विधिवत देवी सरस्वती का पूजन आरंभ करें और सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें। देवी सरस्वती की कृपा पाने हेतु सर्वश्रेष्ठ मंत्र का स्वर में सात बार जाप करें।
या कुंदेंदु तुषार हार-धवला या शुभ्रा वस्त्रावृता, या वीणा वर दण्ड मंडित करा या श्वेत पद्मासना। या ब्रह्माच्युत शङ्कर प्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दित, सा मां पातु सरस्वती भगवती नि: शेष जाड्यापहा।।