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Maa Baglamukhi: बगलामुखी माता के पूजन से पूर्ण होते हैं साधक के सभी कर्म और शत्रुओं से मिलती है मुक्ति

Acharya Rajrani Sharma Updated 17 Feb 2024 12:22 PM IST
Maa Baglamukhi
Maa Baglamukhi - फोटो : google

खास बातें

Maa Baglamukhi: बगलामुखी माता के पूजन से पूर्ण होते हैं साधक के सभी कर्म और शत्रुओं से मिलती है मुक्ति 

Ma Baglamukhi Puja: गुप्त नवरात्रि पर माँ बगलामुखी पूजन महाविद्याओं के स्वरुप में पूजनीय रहा है. 
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Maa Baglamukhi: बगलामुखी माता के पूजन से पूर्ण होते हैं साधक के सभी कर्म और शत्रुओं से मिलती है मुक्ति 


Ma Baglamukhi Puja: गुप्त नवरात्रि पर माँ बगलामुखी पूजन महाविद्याओं के स्वरुप में पूजनीय रहा है. देवी पूजन द्वारा भक्त अपनी साधना शक्ति के अम्तिम पड़ाव की ओर होता है. देवी पूजन से साधन के सुख पूर्ण होते हैं. 

Baglamukhi Puja Significance देवी पूजन द्वारा शत्रुओं से मुक्ति दिलाने वाला होता है. देवी स्तंभन की देवी हैं. भक्तों को समस्त प्रकार की चिंताओं से मुक्ति प्रदान करती है देवी का पूजन.  

मां बगलामुखी पूजा को दशमहाविद्या के रुप में विशेष स्थान प्राप्त है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मां दुर्गा के इस स्वरुप का पूजन हर प्रकार की बाधा से मुक्ति दिलाने वाला होता है. इस स्वरुप द्वारा  देवी भक्तों का कल्याण करने वाली होती हैं. माता ने समय-समय पर अवतार लिए हैं, माता बगलामुखी भी उनमें से एक हैं. माता को शक्ति एवं स्तंभन की देवी के रुप में पूजा जाता है. देवी  बड़ी से बड़ी विपत्तियों को भी दूर करने वाली है. माता को पीतांबरा शक्ति के रुप में भी जाना जाता है. 

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गुप्त नवरात्रि पर माँ बगलामुखी पूजन  Baglamukhi Puja

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार बगलामुखी पूजन के द्वारा हर बाधा का समापन संभव हो जाता है. बगलामुखी पूजा में देवी की साधना का समय अत्यंत विशेष होता है. माता के पूजन में पीले रंग का उपयोग होता है.  इस पूजा के लिए पीले वस्त्र धारण करना अत्यंत शुभ माना जाता है.  पीले वस्त्र का ही आसन ग्रहण करना चाहिए. देवी की पूजा के दौरान पूजा की सभी वस्तुएं पीले रंग की होनी चाहिए. नवरात्रि के दिनों में हर दिन शक्ति पूजन होता है. इस पूजा काल में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.अशुद्ध मन एवं रुप से साधना नहीं करनी चाहिए. कहा जाताहै कि बगलामुखी देवी अपने भक्त की परीक्षा भी लेती हैं. इसी कारण साधना काल के दौरान भयानक आवाजें या अनुभव भी हो सकते हैं. जो भक्त बिना भय के अपनी साधना जारी रखता है वही माता का आशीर्वाद प्राप्त करता है. 
 

देवी बगलामुखी पूजा से मिलता है सुख सौभाग्य 

माता का पूजन मृत्युंजय होता है. इस साधना में महामृत्युंजय मंत्र की एक माला का जाप अवश्य करना चाहिए. साधना उत्तर दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए. मंत्र का जाप हल्दी की माला से करना चाहिए. जाप के बाद माला को गले में धारण करें. गुप्त नवरात्रि में प्रात:काल एवं रात्रि की साधना मुख्य होती है. देवी के मंत्र जप की संख्या निश्चित होनी चाहिए और प्रतिदिन उतनी ही संख्या में जप करना चाहिए. यह संख्या साधक को स्वयं तय करनी चाहिए. 
 

बगलामुखी अष्टोत्तर शतनाम स्त्रोत 

ओम् ब्रह्मास्त्र-रुपिणी देवी, माता श्रीबगलामुखी।
चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च, ब्रह्मानन्द-प्रदायिनी॥
महा-विद्या महा-लक्ष्मी श्रीमत् -त्रिपुर-सुन्दरी।
भुवनेशी जगन्माता, पार्वती सर्व-मंगला॥
ललिता भैरवी शान्ता, अन्नपूर्णा कुलेश्वरी।
वाराही छिन्नमस्ता च, तारा काली सरस्वती॥
जगत् -पूज्या महा-माया, कामेशी भग-मालिनी।
दक्ष-पुत्री शिवांकस्था, शिवरुपा शिवप्रिया॥
सर्व-सम्पत्-करी देवी, सर्व-लोक वशंकरी।
वेद-विद्या महा-पूज्या, भक्ताद्वेषी भयंकरी॥
स्तम्भ-रुपा स्तम्भिनी च, दुष्ट-स्तम्भन-कारिणी।
भक्त-प्रिया महा-भोगा, श्रीविद्या ललिताम्बिका॥
मेना-पुत्री शिवानन्दा, मातंगी भुवनेश्वरी।
नारसिंही नरेन्द्रा च, नृपाराध्या नरोत्तमा॥
नागिनी नाग-पुत्री च, नगराज-सुता उमा।
पीताम्बरा पीत-पुष्पा च, पीत-वस्त्र-प्रिया शुभा॥
पीत-गन्ध-प्रिया रामा, पीत-रत्नार्चिता शिवा।
अर्द्ध-चन्द्र-धरी देवी, गदा-मुद्-गर-धारिणी॥
सावित्री त्रि-पदा शुद्धा, सद्यो राग-विवर्द्धिनी।
विष्णु-रुपा जगन्मोहा, ब्रह्म-रुपा हरि-प्रिया॥
रुद्र-रुपा रुद्र-शक्तिद्दिन्मयी भक्त-वत्सला।
लोक-माता शिवा सन्ध्या, शिव-पूजन-तत्परा॥
धनाध्यक्षा धनेशी च, धर्मदा धनदा धना।
चण्ड-दर्प-हरी देवी, शुम्भासुर-निवर्हिणी॥
राज-राजेश्वरी देवी, महिषासुर-मर्दिनी।
मधु-कैटभ-हन्त्री च, रक्त-बीज-विनाशिनी॥
धूम्राक्ष-दैत्य-हन्त्री च, भण्डासुर-विनाशिनी।
रेणु-पुत्री महा-माया, भ्रामरी भ्रमराम्बिका॥
ज्वालामुखी भद्रकाली, बगला शत्र-ुनाशिनी।
इन्द्राणी इन्द्र-पूज्या च, गुह-माता गुणेश्वरी॥
वज्र-पाश-धरा देवी, जिह्वा-मुद्-गर-धारिणी।
भक्तानन्दकरी देवी, बगला परमेश्वरी॥
॥ फल श्रुति ॥
अष्टोत्तरशतं नाम्नां, बगलायास्तु यः पठेत्।
रिप-ुबाधा-विनिर्मुक्तः, लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात्॥
भूत-प्रेत-पिशाचाश्च, ग्रह-पीड़ा-निवारणम्।
राजानो वशमायाति, सर्वैश्वर्यं च विन्दति॥
नाना-विद्यां च लभते, राज्यं प्राप्नोति निश्चितम्।
भुक्ति-मुक्तिमवाप्नोति, साक्षात् शिव-समो भवेत्॥
॥ श्रीरूद्रयामले सर्व-सिद्धि-प्रद श्री बगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ॥
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