कुंडली के कुछ विशेष भाव में मंगल मौजूद होने पर व्यक्ति मांगलिक कहलाता है. इस के अतिरिक्त मंगल की प्रकृति एवं उसके गुण प्रभाव व्यक्ति को शक्ति प्रदान करने वाले होते हैं. आइये जानते हैं कि मंगल कैसे अपने प्रभाव जीवन पर दिखाता है.
जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
मंगल का मांगलिक प्रभाव
मांगलिक कुंडली होने पर मांगलिक का विवाह मांगलिक से ही करने की बात कही जाती है. कुंडली के 2 4 7, 8, 12 भाव में मंगल मौजूद हो तो वह व्यक्ति पूर्ण रूप से मांगलिक कहलाता है. मंगल 28 वर्ष की आयु के बाद कमजोर नहीं होता है क्योंकि सच तो यह है कि अगर कोई व्यक्ति मांगलिक है तो वह मांगलिक है, वह मरते दम तक मांगलिक ही रहेगा, उसका दोष कम नहीं होता है. यदि किसी के सातवें भाव में मंगल हो तो सप्तमेश जीवनसाथी का भाव होता है.
साझेदारी का भाव है, पार्टनरशिप का भाव है. ऐसे व्यक्ति को किसी के साथ पार्टनरशिप करते समय कई बातों का ध्यान रखना चाहिए. यदि ऐसा व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करता है जो मांगलिक नहीं है तो यह विवाह कई परेशानियों से गुजर सकता है. उनके बीच झगड़ा अधिक हो सकता है.
मंगल का प्रभाव
सप्तम भाव में शुभता होती है, यही एक कारण है कि ऐसे व्यक्ति को जीवन में कोई भी चीज एक बार ही मिलती है, कोई संपत्ति या कोई वाहन, वह उस व्यक्ति को एक बार ही मिलती है. अगर वह चीज उस व्यक्ति से नहीं संभलती और उसके हाथ से निकल जाती है तो वह दोबारा कभी वापस नहीं आती.
इसलिए मंगल के यहां होने पर सावधान रहना चाहिए नहीं तो पहले घर की दृष्टि सातवें घर पर जाती है. चौथे घर की दृष्टि सातवें घर पर भी जाती है या बारहवें घर की दृष्टि सातवें घर पर भी जाती है, तो यह नियम सभी पर लागू होते हैं.
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प्रथम भाव मेष है जिसमें मंगल ग्रह रहता है तो वह राशि ऊर्जावान होती है और यह मंगल अत्यंत क्रोधी होता है. इसका परिणाम अधिक भुगतना पड़ता है या सप्तम भाव शुभ हो तभी इन्हें संभलकर चलना पड़ता है.