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Home ›   Blogs Hindi ›   Ashwin Purnima: Do this work on Ashwin Purnima, you will always get the blessings of happiness and prosperity.

Ashwin Purnima: आश्विन पूर्णिमा पर जरूर करें ये काम, हमेशा मिलेगा सुख समृद्धि का आशीर्वाद

my jyotish expert Updated 24 Oct 2023 12:18 PM IST
Sharad Purnima
Sharad Purnima - फोटो : my jyotish
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आश्विन पूर्णिमा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. यह समय सुखों एवं समृद्धि को देने वाला होता है. इस समय पर विशेषकर आश्विन पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी का सुख मिलता है. इस दिन कुबेर एवं लक्ष्मी जी को को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के कार्य करने शुभ होते हैं. यह समय आर्थिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण है. इस दिन को कई रुपों में मनाते हैं. इसे कोजागरी भी कहा जाता है. इस वर्ष आश्विन पूर्णिमा 28 अक्टूबर 2023, को पड़ने वाली है. आश्विन पूर्णिमा का चंद्रमा शीतलता प्रदान करता है. पौराणिक मान्यता है कि आश्विन पूर्णिमा के दिन ही समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं. इसलिए आश्विन पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करने से वह जल्दी प्रसन्न होती हैं और उनकी कृपा से पूरे साल धन की कमी नहीं रहती है.

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लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें
आश्विन पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना बेहद शुभ होता है. आश्विन पूर्णिमा की रात को स्नान करने के बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर देवी लक्ष्मी की मूर्ति या फोटो स्थापित करें. फिर देवी लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें और लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें. मां लक्ष्मी की कृपा से आप हमेशा धन-धान्य से भरे रहेंगे.
 
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लक्ष्मी स्त्रोत 

नमस्तस्यै सर्वभूतानां जननीमब्जसम्भवाम्
श्रियमुनिन्द्रपद्माक्षीं विष्णुवक्षःस्थलस्थिताम्॥
पद्मालयां पद्मकरां पद्मपत्रनिभेक्षणाम्
वन्दे पद्ममुखीं देवीं पद्मनाभप्रियाम्यहम्॥
त्वं सिद्धिस्त्वं स्वधा स्वाहा सुधा त्वं लोकपावनी
सन्धया रात्रिः प्रभा भूतिर्मेधा श्रद्धा सरस्वती॥
यज्ञविद्या महाविद्या गुह्यविद्या च शोभने
आत्मविद्या च देवि त्वं विमुक्तिफलदायिनी॥
आन्वीक्षिकी त्रयीवार्ता दण्डनीतिस्त्वमेव च
सौम्यासौम्येर्जगद्रूपैस्त्वयैतद्देवि पूरितम्॥
का त्वन्या त्वमृते देवि सर्वयज्ञमयं वपुः
अध्यास्ते देवदेवस्य योगिचिन्त्यं गदाभृतः॥
त्वया देवि परित्यक्तं सकलं भुवनत्रयम्
विनष्टप्रायमभवत्त्वयेदानीं समेधितम्॥
दाराः पुत्रास्तथाऽऽगारं सुहृद्धान्यधनादिकम्
भवत्येतन्महाभागे नित्यं त्वद्वीक्षणान्नृणाम्॥
शरीरारोग्यमैश्वर्यमरिपक्षक्षयः सुखम्
देवि त्वदृष्टिदृष्टानां पुरुषाणां न दुर्लभम्॥
त्वमम्बा सर्वभूतानां देवदेवो हरिः पिता
त्वयैतद्विष्णुना चाम्ब जगद्वयाप्तं चराचरम्॥
मनःकोशस्तथा गोष्ठं मा गृहं मा परिच्छदम्
मा शरीरं कलत्रं च त्यजेथाः सर्वपावनि॥
मा पुत्रान्मा सुहृद्वर्गान्मा पशून्मा विभूषणम्
त्यजेथा मम देवस्य विष्णोर्वक्षःस्थलाश्रये॥
सत्त्वेन सत्यशौचाभ्यां तथा शीलादिभिर्गुणैः
त्यज्यन्ते ते नराः सद्यः सन्त्यक्ता ये त्वयाऽमले॥
त्वयाऽवलोकिताः सद्यः शीलाद्यैरखिलैर्गुणैः
कुलैश्वर्यैश्च युज्यन्ते पुरुषा निर्गुणा अपि॥
सश्लाघ्यः सगुणी धन्यः स कुलीनः स बुद्धिमान्
स शूरः सचविक्रान्तो यस्त्वया देवि वीक्षितः॥
सद्योवैगुण्यमायान्ति शीलाद्याः सकला गुणाः
पराङ्गमुखी जगद्धात्री यस्य त्वं विष्णुवल्लभे॥
न ते वर्णयितुं शक्तागुणञ्जिह्वाऽपि वेधसः
प्रसीद देवि पद्माक्षि माऽस्मांस्त्याक्षीः कदाचन॥
एवं श्रीः संस्तुता स्मयक् प्राह हृष्टा शतक्रतुम्
श्रृण्वतां सर्वदेवानां सर्वभूतस्थिता द्विज॥
परितुष्टास्मि देवेश स्तोत्रेणानेन ते हरेः
वरं वृणीष्व यस्त्विष्टो वरदाऽहं तवागता॥
वरदा यदिमेदेवि वरार्हो यदिवाऽप्यहम्
त्रैलोक्यं न त्वया त्याच्यमेष मेऽस्तु वरः परः॥
स्तोत्रेण यस्तवैतेन त्वां स्तोष्यत्यब्धिसम्भवे
स त्वया न परित्याज्यो द्वितीयोऽस्तुवरो मम॥
त्रैलोक्यं त्रिदशश्रेष्ठ न सन्त्यक्ष्यामि वासव
दत्तो वरो मयाऽयं ते स्तोत्राराधनतुष्टया॥
यश्च सायं तथा प्रातः स्तोत्रेणानेन मानवः
स्तोष्यते चेन्न तस्याहं भविष्यामि पराङ्गमुखी॥
 
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