हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं।पितृ पक्ष जिसे श्राद्ध या कानागत भी कहा जाता है, श्राद्ध पूर्णिमा के साथ शुरू होकर सोलह दिनों के बाद सर्व पितृ अमावस्या के दिन समाप्त होता है। हिंदू अपने पूर्वजों (अर्थात पितरों) को विशेष रूप से भोजन प्रसाद के माध्यम से सम्मान, धन्यवाद व श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
एकैकस्य तिलैर्मिश्रांस्त्रींस्त्रीन् दद्याज्जलाज्जलीन्। यावज्जीवकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।
भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया।
पितृपक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव (जौ) तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से अंश लेकर वह अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र उर्ध्वमुख होने लगता है। 15 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितर उसी ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ वापस चले जाते हैं। इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं और इसी पक्ष में श्राद्ध करने से पित्तरों को प्राप्त होता है।
ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध के समय, पूर्वजों अपने रिश्तेदारों को आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। श्राद्ध कर्म की व्यख्या रामायण और महाभारत दोनों ही महाकाव्य में मिलती है।
पितृ पक्ष का महाभारत से एक प्रसंग
श्राद्ध का एक प्रसंग महाभारत महाकाव्य से इस प्रकार है, कौरव-पांडवों के बीच युद्ध समाप्ति के बाद, जब सब कुछ समाप्त हो गया, दानवीर कर्ण मृत्यु के बाद स्वर्ग पहुंचे। उन्हें खाने मे सोना, चांदी और गहने भोजन के जगह परोसे गये। इस पर, उन्होंने स्वर्ग के स्वामी इंद्र से इसका कारण पूछा।इस पर, इंद्र ने कर्ण को बताया कि पूरे जीवन में उन्होंने सोने, चांदी और हीरों का ही दान किया, परंतु कभी भी अपने पूर्वजों के नाम पर कोई भोजन नहीं दान किया। कर्ण ने इसके उत्तर में कहा कि, उन्हें अपने पूर्वजों के बारे मैं कोई ज्ञान नही था, अतः वह ऐसा करने में असमर्थ रहे।तब, इंद्र ने कर्ण को पृथ्वी पर वापस जाने के सलाह दी, जहां उन्होंने इन्हीं सोलह दिनों के दौरान भोजन दान किया तथा अपने पूर्वजों का तर्पण किया। और इस प्रकार दानवीर कर्ण पित्र ऋण से मुक्त हुए।
हिंदू पंचांग के अनुसार श्राद्ध पक्ष 10 सितंबर से शुरू होकर 25 सितंबर 2022 तक रहने वाला है. भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तिथि तक की अवधि पितृ पक्ष के रूप में जानी जाती है. इस दौरान पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान, और श्राद्ध किए जाते हैं ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके.
10 सितंबर शनिवार - पूर्णिमा का श्राद्ध, प्रतिपदा का श्राद्ध
11 सितंबर रविवार - द्वितीया का श्राद्ध
12 सितंबर सोमवार - तृतीया का श्राद्ध
13 सितंबर मंगलवार - चतुर्थी का श्राद्ध
14 सितंबर बुधवार - पंचमी का श्राद्ध
15 सितंबर गुरुवार - षष्ठी का श्राद्ध
16 सितंबर शुक्रवार - सप्तमी का श्राद्ध
17 सितंबर शनिवार- सप्तमी, अष्टमी का श्राद्ध
18 सितंबर रविवार - अष्टमी का श्राद्ध
19 सितंबर सोमवार - नवमी श्राद्ध (इसे मातृ नवमी श्राद्ध भी कहते हैं.)
20 सितंबर मंगलवार - दशमी का श्राद्ध
21 सितंबर बुधवार - एकादशी का श्राद्ध
22 सितंबर गुरुवार - द्वादशी, सन्यासियों का श्राद्ध
23 सितंबर शुक्रवार - त्रयोदशी का श्राद्ध
24 सितंबर शनिवार - चतुर्दशी का श्राद्ध
25 सितंबर रविवार - अमावस्या का श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध, महालया श्राद्ध
हमारी सेवाएं :-
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