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सृष्टि और आध्यात्मिक विकास में शिव शक्ति का योग
हिंदू पौराणिक कथाओं में शिव और शक्ति अस्तित्व को बेहद ही खूबसूरत रुप में वर्णित किया गया है. दोनों को आदिशक्ति के रूप में पूजा जाता है. शास्त्रों में कहा गया है कि शिव ही शक्ति है, शक्ति ही शिव है. शिव ने ही सृष्टि के हित के लिए शक्ति के रूप की रचना की थी. प्राणियों का जीवन शुरू होने के साथ उनके जीवन हेतु प्रकृति का निर्माण शक्ति द्वारा ही संभव हो पाया. इसलिए शिव और शक्ति एक दूसरे के बिना अधूरे माने जाते हैं.
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जड़ और चेतन में शिव शक्ति का प्रभाव
सृष्टि की रचना में जब ब्रह्मा जी ने देखा कि पृथ्वी पर किसी भी प्रकार का कोई विकास नहीं हो रहा है. तब जड़ ओर चेतन में जो समाया वह शिव और शक्ति के द्वारा ही संभव हो पाया है. ब्रह्मा जी ने विष्णु जी से मदद मांगी और विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को शिव शक्ति की अराधना करने को कहा.
ब्रह्मा जी के तप से प्रसन्न होकर अदि देव शिव ने खुद में शक्ति को समाहित किया जिससे अर्धनारीश्वर स्वरुप साकार हुआ. शिव के पुरुष रूप और स्त्री रूप शक्ति ने मिलकर पृथ्वी पर नए जीवों की उत्पत्ति की जिससे पृथ्वी का विकास संभव हो पाया. इस कारण दोनों ही जड़ चेतन के आधार हैं ओर एक दूसरे के साथ स्पष्ट रुप से जुड़े हैं.
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शिव और शक्ति को एक दूसरे का पूरक
भगवान शिव का शक्ति रूप ही माता पार्वती का स्वरूप है. इस कारण से शिव और शक्ति को एक दूसरे का पूरक माना जाता है, शिव और शक्ति दोनों एक ही हैं. तंत्र शास्त्रों में भी इन दोनों के मिलन का विशेष स्थान है जो आध्यात्मिक क्रियाओं की पूर्णता हेतु अत्यंत मुख्य रुप से काम करता है. शक्ति, ईश्वर की अभिव्यक्ति, सृजन में सक्रिय भागीदारी का प्रतीक है तथा शिव, अतिक्रमण का प्रतीक, शिव की गतिशील शक्ति का पूरक है. दोनों युगल बनाते हैं जहां सृष्टि का निर्माण संभव हो पाता है.