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Shradh Paksha : त्रयोदशी श्राद्ध, जानिए आरंभ तिथि, पूजा का समय और इसका महत्व

Myjyotish Expert Updated 23 Sep 2022 12:06 PM IST
Shradh Paksha : त्रयोदशी श्राद्ध, जानिए आरंभ तिथि, पूजा का समय और इसका महत्व
Shradh Paksha : त्रयोदशी श्राद्ध, जानिए आरंभ तिथि, पूजा का समय और इसका महत्व - फोटो : google
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Shradh Paksha : त्रयोदशी श्राद्ध, जानिए आरंभ तिथि, पूजा का समय और इसका महत्व


त्रयोदशी श्राद्ध तिथि को काकबली और बलभोलानी तेरस के नाम से भी जाना जाता है. त्रयोदशी तिथि श्राद्ध 23 सितंबर को शुक्रवार को है. त्रयोदशी श्राद्ध को तेरस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है.  त्रयोदशी श्राद्ध तिथि को काकबली और बलभोलानी तेरस के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि को श्राद्ध करना परिवार के उन के लिए उपयुक्त माना जाता है जो अब इस दुनिया में जीवित नहीं हैं.

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पितृ पक्ष या श्राद्ध एक विशेष समय होता है जब हिंदू अपने मृत पूर्वजों को प्रसन्न करने उनकी शांति के लिए तथा उनका आशीर्वाद पाने हेतु यह सभी पूजा कर्म करते हैं.  इस दिन, लोग कुछ पूजा अनुष्ठान करते हैं और परिवार के सदस्यों की शांति के लिए भोजन करते हैं जिनका निधन हो गया है

त्रयोदशी श्राद्ध तिथि मुहूर्त 
त्रयोदशी श्राद्ध शुक्रवार, 23 सितम्बर 2022 को किया जाएगा. इस दिन कुतुप मूहूर्त - 11:49 से 12:37  तक रहेगा जिसकी अवधि 48 मिनट की होगी, इसके अलावा रौहिण मूहूर्त दोपहर 12:37  से 13:26 तक रहेगा. अपराह्न काल समय 13:26  से 15:51 तक रहेगा. त्रयोदशी तिथि का प्रारम्भ  23 सितम्बर 2022 को 25:17 से होगा और त्रयोदशी तिथि समाप्त होगी 24 सितम्बर 2022 को 26:30 पर होगी. 

पुराणों की मान्यता
त्रयोदशी श्राद्ध पितृ पक्ष की त्रयोदशी तिथि है. इस दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु दोनों पक्षों में से किसी एक के त्रयोदशी के दिन हुई हो. कुटुप मुहूर्त और रोहिण मुहूर्त को श्राद्ध करने के लिए शुभ मुहूर्त माना जाता है. उसके बाद का मुहूर्त भी अपर्णा कला के अंत तक रहता है. अंत में श्राद्ध तर्पण किया जाता है.

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मार्कंडेय पुराण शास्त्र में कहा गया है कि श्राद्ध से पितरों को संतुष्टि प्राप्त होती है और स्वास्थ्य, धन और सुख की प्राप्ति होती है. ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति श्राद्ध के सभी अनुष्ठान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. वर्तमान पीढ़ी पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध कर अपना ऋण चुकाती है.

त्रयोदशी श्राद्ध अनुष्ठान
श्राद्ध करने वाले को इस दिन शुद्ध चित्त मन से पवित्र होकर कार्य करने चाहिए. प्रात:काल इस तिथि का श्राद्ध करने वालों को स्नान के पश्चात साफ वस्त्र धारण करने चाहिए. धोती और पवित्र जनेऊ को धारण करते हुए यह कार्य करने चाहिए. तर्पण करने वाले को  घास की एक अंगूठी और एक पवित्र धागा पहनना चाहिए. पूजा पद्धति के अनुसार, अनुष्ठान के दौरान पवित्र धागे को कई बार बदला जाता है. पिंडदान किया जाता है, चावल, गाय का दूध, घी, चीनी और शहद का एक गोल ढेर बनाया जाता है जिसे पिंड कहा जाता है. पितरों को श्रद्धा और सम्मान के साथ पिंड चढ़ाया जाता है.

काले तिल और जौ के साथ तर्पण की रस्म के दौरान एक बर्तन से धीरे-धीरे पानी डाला जाता है. इस समय भगवान विष्णु और यम की पूजा की जाती है. भोजन पहले गाय को, फिर कौवे, कुत्ते और चीटियों को दिया जाता है. उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा दी जाती है. इन दिनों दान और दान को बहुत फलदायी माना जाता है. इस समय के दौरान भागवत पुराण और भगवद गीता के अनुष्ठान पाठ की व्यवस्था भी करते हैं.

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