सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार कुल 33 करोड़ देवी-देवता हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सभी देवी-देवताओं में शनि देव न्याय के देवता कहे जाते हैं। शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती से सभी मनुष्य भयभीत रहते हैं। शनि देव का नाम आते ही लोग उनके प्रकोप से डर जाते हैं। हर व्यक्ति शनि देव के अशुभ फल से बचना चाहता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि सब से धीमी गति से चलने वाले ग्रह हैं।
ज्योतिषशास्त्र में शनि की अहम भूमिका है। नौ ग्रहों की गति और चाल के अनुसार ज्योतिषशास्त्र कार्य करता है। नौवों ग्रहों में शनि देव न्याय के प्रतीक हैं। कुंडली में शनि की खराब स्थिति होने पर शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और महादशा लग जाती है। ज्योतिष के साथ ही धर्म शास्त्रों की मानें तो शनि से जुड़े दोष की वजह से व्यक्ति कई प्रकार की परेशानियों से घिर जाता है, स्वस्थ खराब हो जाता है, कार्य में बाधा आती है, कोई काम आसानी से नहीं होता।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कुंडली में शनि के दोष के कारण गणेश जी का सिर कटा, श्रीराम को वनवास हुआ, रावण का वध हुआ, पांडवों को वन गमन हुआ और राजा हरीशचंद्र को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनि देव मनुष्य के पाप और बुरे कार्यों का दंड प्रदान करते हैं।
शनि देव किसी एक राशि में ढाई वर्ष तक रहते हैं। शनि के एक राशि में रहने से 3 राशियों पर साढ़ेसाती तो 2 पर शनि की ढैय्या लग जाती है। वर्तमान में शनि के मकर राशि के भ्रमण पर होने की वजह से मकर, धनु और कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती लगी हुई है वहीं मिथुन और कन्या राशि पर शनि की ढैय्या लगी है।
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