हमारी भारतीय संस्कृति में पूर्वजों को भी अपने महत्वपूर्ण माना जाता है और उन्हें प्रत्येक साल याद करने के लिए श्राद्ध किया जाता है तथा उनसे आशीर्वाद और वरदान पाने का पवित्र अवसर श्राद्ध यानी पितृपक्ष 20 सितंबर 2021 से 6 अक्टूबर 2021 के मध्य मनाया जाएगा। पुराणों के अनुसार यह माना जाता है कि सभी पितरों के परम पितर नारायण श्री विष्णु अपनी सत्यता को चरितार्थ करते हुए अलग-अलग पितरों के रूप में अपने भक्तों के यहां जाकर श्राद्ध का तर्पण करते हैं। सभी वेदों में यह लिखा है कि पित्रों वै विष्णु जिसका अर्थ है भगवान विष्णु ही पितर है। श्राद्ध पक्ष में सभी सनातन धर्म को मानने वाले लोग अपने माता-पिता, दादा-दादी और परदादा-परदादी का श्राद्ध तर्पण करके उन्हें तृप्त करते हैं। तथा साथ ही हमारे शास्त्रों में पुत्र के विषय में लिखा है कि पुन्नाम नरकात् त्रायते इति पुत्रः अर्थात पुत्र केवल वह होता है जो नरक से रक्षा करता है। हमारे शास्त्रों में यह माना जाता है कि श्राद्ध कर्म के द्वारा ही पुत्र जीवन में पितर ऋण से मुक्त हो पाता है। इसलिए हमारे शास्त्रों में चिराग को अनिवार्य कहां गया है। तथा शास्त्रों के अनुसार जीवनी संसार में मोह माया में पड़ कर पाप और पुण्य दोनों प्रकार के कर्म करता है तथा इसी आधार पर पुण्य का फल स्वर्ग और पाप का फल नरक मिलता है।नर्क में पापी को घोर यातनाएं भोगनी पड़ती हैं और स्वर्ग में जीव सानंद रहता है। भिन्न-भिन्न जन्मों में अपने किये हुए शुभाशुभ कर्मफल के अनुसार स्वर्ग-नरक का सुख भोगने के पश्च्यात जीवात्मा पुनः चौरासी लाख योनियों की यात्रा पर निकल पडती है अतः पुत्र-पौत्रादि का यह कर्तव्य बनता है कि वे अपने माता-पिता तथा पूर्वजों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक ऐसे शास्त्रोक्त कर्म करें जिससे उन मृत प्राणियों को परलोक अथवा अन्य लोक में भी सुख प्राप्त हो सके। शास्त्रों में मृत्यु के बाद और्ध्व दैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्मविपाक आदि के द्वारा पापों के विधान का प्रायश्चित कहा गया है।
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