पिंडदान मुख्यता अपने पूर्वजों की मुक्ति हेतु किया जाता है इसलिए से पिंडदान कहते हैं। श्राद्ध पक्ष में पिंडदान का काफी महत्व माना जाता है। पिण्डदान नदी के तट पर किया जाता है और दक्षिण की तरफ मुंह करके और जनेऊ को दाए कंधे पर रखकर चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर और शहद को मिलाकर तैयार किए गए पिंडों का
श्राद्ध भाव के साथ अपने पितरों को अर्पित किया जाता है। पितरों का तर्पण करने से घर में सुख शांति और समृद्धि आती है। पूर्वजों को पानी देकर एवं ब्राह्मणों को भोजन कराने से हमारे पूर्वज प्रसन्न हो जाते हैं। हमारे पूर्वजों को भोजन की प्राप्ति होती है। जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। तर्पण करने से बड़ी-बड़ी समस्याएं दूर हो जाती हैं एवं भविष्य काल में जीवन में आने वाली बिडंबनाएं दूर होती हैं।अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने हेतु एवं उनके प्रति श्रद्धा बनाए रखने हेतु उनका का तर्पण किया जाता है। जब पितृपक्ष आते हैं तो पितरों के द्वार खुल जाते हैं एवं उनकी दृष्टि परिवार पर पड़ जाती है।
जो पितृपक्ष के दौरान श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध एवं पिंडदान और ब्राह्मण को भोजन नहीं कराते हैं तो उनको इस सांसारिक जीवन में सभी सुख और भूख प्राप्त नहीं हो पाते हैं। मृत्यु के दौरान श्राद्ध करने पर स्वर्ग की प्राप्ति होती है इसलिए श्राद्ध अवश्य कराना चाहिए।
सर्वपितृ अमावस्या को गया में अर्पित करें अपने समस्त पितरों को तर्पण, होंगे सभी पूर्वज एक साथ प्रसन्न -6 अक्टूबर 2021