लाल किताब के अनुसार
शनिदेव जब अलग अलग भावों में विराजमान होते हैं तो उनके अलग अलग प्रभाव होते हैं। उसके अनुसार कई ऐसे कार्य हैं जिसे करने से लेने के देने भी पड़ जाते हैं। शनि एक ऐसे ग्रह हैं जिनके नाम से आम आदमी डर जाता है। शनिदेव को न्यायप्रिय माना जाता है लोग भले उनसे डरते हों पर ये कहा जाता है कि जिनके अच्छे कर्म होते हैं उन पर हमेशा शनिदेव की कृपा रहती है। कुंडली में जब शनि विराजमान होते हैं तो वो या तो व्यक्ति को बना देते हैं या बर्बाद कर देते हैं। शनि की साढ़े साती जब किसी कुंडली में लगती है तो उसे प्रथम एवं द्वितीय चरण में आर्थिक, मानसिक सभी प्रकार के नुकसान झेलने पड़ते हैं। प्रत्येक कुंडली में बारह भाव होते हैं, शनिदेव किसी भी भाव में विराजमान हो सकते हैं और सभी भावों में अलग प्रभाव छोड़ते हैं। राहु एवं शनि दो ऐसे ग्रह हैं जो भला करें तो इंसान बना दे और बुरा करें तो जीना मुश्किल कर दें। शनि कुंडली के किसी भाव में बैठकर लोगों के सुख दुख, मुसीबत, समस्या, संघर्ष सब तय कर देते हैं। कुंडली में किसी भी भाव पर विराजमान होकर जीवन की दशा एवं दिशा का निर्धारण कर देते हैं। आइये जानते हैं किन भावों में हो शनि विराजमान तो क्या करना चाहिए क्या नही करना चाहिए-
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