हिंदू शास्त्रों में अलग-अलग कार्यों के सफलता के लिए अलग-अलग संख्याओं में अलग-अलग मंत्रों के जाप का विधान है। इन जापों में महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी है। महामृत्युंजय मंत्र के जाप मात्र से अनेकों प्रकार के कष्ट और बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
महामृत्युंजय मंत्र का अलग अलग प्रकार के समाधानों के लिए अलग अलग संख्याओं में जाप करना होता है। महामृत्युंजय मंत्र में कुल 33 अक्षर होते हैं। महर्षि वशिष्ठ के अनुसार ये 33 अक्षर 33 देवताआं के घोतक होते हैं। इन 33 देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्यठ 1 प्रजापति इतथा 1 षटकार हैं। इन तैंतीस देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहित होने के कारण इसे सबसे शक्तिशाली मंत्र कहा जाता है।
जाप करते समय और सभी सभी पूजा-पाठ करते समय अपना मुख पूर्व दिशा की ओर ही रखना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र को मृत संजीवनी मंत्र भी कहते हैं। यह महादेव का मंत्र है। मंत्र का जाप अगर आप शिवलिंग के पास बैठकर कर रहे हैं तो जल या दूध से अभिषेक करते रहना चाहिए। साथ ही जाप को करने के लिए एक शांत वातावरण वाले स्थान का चुनाव करें, जिससे आप का माँ जाप के समय इधर-उधर न भटके। जाप के समय आलस्य ना करें और उबासी न लें।
आइए जानते हैं महामृत्युंजय मंत्र का किस समस्या के निवारण के लिए कितनी बार जाप करना चाहिए।
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