क्या अर्थ होता है तर्पण का ?
भारत की परंपरा के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए हर मुक्ति कार्य को श्राद्ध कहते हैं व करने की क्रिया और देवताओं ऋषियों या पितरों को तुडल और जल में मिश्रित तेल अर्पित करने की विधि को तर्पण कहलाता है ।
शास्त्र अनुसार तर्पण करना ही पितरों को पिंडदान करना कहलाता है ।
हिंदी शास्त्र ज्ञान में तर्पण मुख्य रूप से 6 प्रकार के होते हैं : - देव-तर्पण, ऋषि-तर्पण, दिव्य-मानव-तर्पण, दिव्य-पितृ-तर्पण, यम-तर्पण और मनुष्य-पितृ-तर्पण ।
आइए जानते हैं सावन मास की पूर्णिमा पर होने वाले ऋषि तर्पण की कुछ और खास बातें:
- यदि आपके परिवार के पितरों को शांति प्रदान नहीं हो रही है तो आप सावन मास की पूर्णिमा के दिन ऋषि तर्पण कर अपने घर परिवार के पितरों को नियमित रूप से तर्पण उन्हें शांति प्रदान कर सकते हैं । ऐसा करने से सभी पितरों को तृप्ति मिल जाती है ।
- इस बात का आप खास ख्याल रखें कि तर्पण करते समय आपका चेहरा इन दिशा में होना चाहिए
शिव जी से दीर्घायु का वरदान पाने के लिए कराएँ शिवसहस्त्रार्चन, काशी में कराने हेतु यहाँ बुक करें