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पितृपक्ष में इन बातों का रखें खास खयाल, मिलेगी पितरों को संतुष्टि

sonam Rathore my jyotish expert Updated Sat, 25 Sep 2021 09:37 AM IST
shradh 2021
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पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और समर्पण का पर्व पितृ पक्ष इस बार 21 सितंबर से आरंभ हो रहा है जो 6 अक्टूबर तक रहेगा। वैसे कुछ प्रोष्ठपदी पूर्णिमा से ही पितृ पक्ष का आरंभ मान लेते हैं इसलिए ऐसे लोग 20 सितंबर से पितृपक्ष मान रहे हैं। जबकि पक्ष का मतलब होता है पखवाड़ा जो शुक्ल और कृष्ण दो भागों में बंटा है। इसलिए शास्त्रों में आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर अमावस्या तिथि तक को पितृ पक्ष कहा गया है। इस आधार पर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक ही पितृ पक्ष है। पूर्णिमा तिथि को ऋषि तर्पण किया जाता है जिसमें अगस्त मुनि को जल देकर पितरों का आह्वान किया जाता है और फिर प्रतिपदा तिथि से इनकी पूजा की जाती है। शुक्ल या कृष्ण पक्ष में जिस भी तिथि में पूर्वज देह त्याग करके परलोक गए हैं उस तिथि में उनके नाम से विशेष पूजन और ब्रह्म भोजन करवाया जाता है। जिन पितृगणों का देहांत पूर्णिमा तिथि में हुआ है उनका भी विशेष पूजन अमावस्या तिथि के दिन ही करना चाहिए। इस वर्ष पितृ पक्ष 16 दिनों का है। पितृ पक्ष पक्ष में पितृगणों को संतुष्ट करने के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए।

पितृ पक्ष पूरी तरह से हमारे पूर्वजों को समर्पित होते हैं. इन दिनों में पितर भोजन और जल ग्रहण करने के लिए धरती पर आते हैं. ऐसे में पितरों को प्रसन्न करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. शुरुआत 20 सितंबर से हो चुकी है. इन दिनों को पूर्वजों के उपकार चुकाने के दिन कहा जाता है. मान्यता है कि इन दिनों में पितृलोक में जल का अभाव होता है, ऐसे में हमारे पितर पृथ्वी लोक पर अपने वशंजों के पास भोजन और जल ग्रहण करने के लिए आते हैं. श्राद्ध और तर्पण के जरिए वशंज अपने पूर्वजों का कर्ज चुकाते हैं.

इसीलिए इन दिनों को श्राद्ध पक्ष (Shradh Paksha 2021) भी कहा जाता है. माना जाता है कि श्राद्ध पक्ष में यदि पितर अपने बच्चों से प्रसन्न होकर जाएं तो परिवार को उनका आशीर्वाद मिलता है और ऐसे परिवार में धन-धान्य, सफलता, वंश आदि किसी चीज की कमी नहीं होती. अगर आप भी इस श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों को संतुष्ट करना चाहते हैं तो 5 बातों का विशेष खयाल रखें.

शास्त्रों में बताया गया है कि देव पूजन का समय प्रातः काल है जबकि पितृ काल मध्याह्न काल है इसलिए पितृगणों की पूजा दोपहर के समय ही करना चाहिए। पितृगणों के निमित्त ब्राह्मणों को जो भोजन करवाना चाहिए उसके लिए दोपहर का समय रखना चाहिए। इसके अलावा पितृगणों के लिए दान किया जाने वाला भोजन गाय, कौए और कुत्ते को भी जरूर देना चाहिए।

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