कौवे को श्राद्धपक्ष में पितरों के प्रतीक के समान मान कर भोजन कराया जाता है व उनकी भक्ति की जाती है। कौओं को विनम्रता पूर्ण भोजन कराए जाने व भक्ति की जाने का उल्लेख विष्णु पुराण में भी है। लेकिन इन दिनों देश में कौवों की संख्या घटने के कारण भोग लगाने में भी बाधा उत्पन्न होती है।
हिन्दू धर्म के अनुसार व्यक्ति के पैदा होते ही उस पर तीन तरह के ऋण चढ़ जाते हैं जिसमें देव ऋण, पुत्र ऋण और ऋषि ऋण शामिल है। इसमें सर्वोपरि पितृ ऋण को माना जाता है व इससे छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति का श्राद्ध करना आवश्यक है, पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण-श्राद्ध किया जाता है व माना जाता है कि इन दिनों पितृ पृथ्वी पर आते हैं व अपने वंशजों को उत्तम, निरोगी, सुयोग्य रहने तथा अन्य आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यदि पूर्वज प्रसन्न होते हैं तो उसके संकेत भी श्राद्ध पक्ष में ही देखने को मिल जाते हैं । जिसमें कौए की भूमिका अहम है कौए को लेकर कई मानसिकताएं हैं जैसे अगर कौआ छत पर आवाज़ करे तो मेहमान आते है या कौआ अगर धूल में लिपटा हुआ दिखे तो अचानक पैसे मिलने के संकेत होते हैं इत्यादि कौए को लेकर ऐसे कई उदाहरण व मान्यताएं हैं साथ ही श्राद्ध पक्ष को लेकर भी कई मान्यताएं हैं।
कौवे के दिए संकेतों को इस तरह पहचानें:-
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार कौवे और पीपल को पितरों के प्रतीक के समान माना जाता है और ऐसी कुछ मान्यताएं हैं जिनसे पता किया जा सकता है की कौवे द्वारा दिए गए संकेत शुभ है या अशुभ!
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