पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए हर वर्ष पितृपक्ष में पिंडदान किया जाता है, जिससे उनको खुश कर सकें उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख समृद्धि बनी रहे। पिंड का अर्थ एक वस्तु का वृत्ताकार रूप होता है पिंडदान हेतु चावल, दूध, तिल मिलाकर पिंड रूप देकर अर्पण किया जाता है। ऐसा मानना है कि कोरोना की दूसरी लहर के प्रकोप से बड़ी संख्या में लोग दिवंगत हुए हैं। जिससे इस पितृपक्ष श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ सकती है। इस वर्ष पितृपक्ष 21 सितम्बर से शुरू हो रहा है। मान्यता है कि पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यदि आप किसी कारण से पितृदोष के शिकार हैं तो इन दिनों में सही उपाय किये जाने से आप इससे मुक्ति पा सकते हैं। यदि व्यक्ति के दिवंगत होने की तारीख नही याद है तो उसका पिंडदान आश्विन अमावस्या के दिन किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु हो जाती है तो उसका
श्राद्ध चतुर्दशी तिथि में होता है। मान्यता है कि जब पिंडदान पितरों को याद कर किया जाता है वो उन्हें स्वर्ग की ओर ले जाता है जिससे उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख समृद्धि आती है। सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार पिंडदान से मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।
इस पितृ पक्ष, 15 दिवसीय शक्ति समय में गया में अर्पित करें नित्य तर्पण, पितरों के आशीर्वाद से बदलेगी किस्मत : 20 सितम्बर - 6 अक्टूबर 2021