हिंदी वर्ष के चौथे मास आषाढ़ की अमावस्या का सनातन धर्म में खास महत्व होता है। आषाढ़ी अमावस्या को हलहारिणी अमावस्या कहा जाता है। आषाढ़ मास की अमावस्या के बाद वर्षा ऋतु का आगमन होता है इस वजह से भी इसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। वर्षा ऋतु का इंतेज़ार किसानों को फसल लगाने के लिए रहता है। इस वजह से हलहारिणी अमावस्या के दिन किसान हल और खेती में उपयोग होने वाली अन्य वस्तुओं की पूजा करते हैं। किसान अपने हल की पूजा करते हुए ईश्वर से अपनी दया-दृष्टि बनाये रखने की कामना करते हैं
हलहारिणी अमावस्या के बाद वर्षा ऋतु आरंभ होती है। इस दिन हल पूजन इस बात का प्रतीक है कि किसी भी शुभ कार्य का आरंभ भगवान की आराधना, पूजन और धन्यवाद करते हुए होना चाहिए । रोजमर्रा के जीवन में उपयोग में आने वाली वस्तुओं का भी उचित सम्मान करना चाहिए । इस दिन किसान विधि-विधान से हल का पूजन करके हरी-भरी फसल बनी रहने के प्रार्थना करते हैं ताकि घर में अन्न-धन की कमी कभी भी महसूस न हो।
हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार हलहारिणी अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए किए गए कार्य शुभ माने जाते हैं। आषाढ़ी अमावस्या के दिन किये गए दान-पुण्य और गंगा स्नान का बहुत महत्व होता है। पूर्वजों की शांति के लिए पवित्र नदी में स्नान कर के दान-दक्षिण देना अच्छा माना जाता है। हलहारिणी अमावस्या श्राद्ध क्रम के लिए भी अत्यंत शुभ दिन माना जाता है।
इस वर्ष ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हलहारिणी अमावस्या 9 जुलाई को पड़ रही है। हलहारिणी या आषाढ़ी अमावस्या 9 जुलाई 2021 को सुबह 05 बजकर 16 मिनट से शुरू हो कर 10 जुलाई की सुबह 06 बजकर 46 मिनट तक रहेगी। हलहारिणी अमावस्या के दिन आप दान-पुण्य कर के लाभान्वित हो सकते हैं। आइए जानते हैं आपकी राशि के हिसाब से कौन सी वस्तुओं का दान आपके दान-पुण्य के फल में वृद्धि कर सकता है।
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