आजकल के समय के साथ तकनीकया भी बदल रही है और तकनीकीयो के बदलते लोग भी बदलना पसंद करते हैं । लेकिन आज के जमाने के लोगों में किसी भी कार्य के प्रति धैर्य को रखना मानो खत्म सा होता जा रहा हैं । लोग अब विपरीत हालातों को सामने पड़ता देख बहुत जल्द परेशान होने लगते हैं । किसी भी हाल में उस समस्या का जल्द से जल्द निवारण चाहते हैं । कोई कार्य व्यक्ति के मन मुताबिक ना हो तो वह उस चीज को लेकर इतना सोचने लगते हैं की वह डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं और आवेश में आकर आत्महत्या का निर्णय ले लेते हैं । लेकिन अगर आपको भी यही लगता है कि आपके आत्महत्या करने से आपके जीवन में हो रही हलचल से आपको छुटकारा मिल जाएगा व मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी तो आपकी सोच बेहद ही गलत है ।
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गरुड़ पुराण में आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों के बारे में बताया गया है । कानून की नज़रों में तो आत्महत्या करना ऐसे ही अपराध माना जाता था लेकिन गरुड़ पुराणों में इसे निंदनीय अपराध माना गया है । जीवन के प्रति अपराध करने को ईश्वर का अपमान भी बताया जाता है ।
कहा जाता है कि जो लोग आत्महत्या का निर्णय लेते हैं उनहे मृत्यु के बाद भी शांति की प्राप्ति नहीं होती हैं । वो लोग आत्महत्या के बाद एक बुरी दशा में पहुंच जाते है जहां ना तो वह किसी अपने से संपर्क कर पाते है और ना ही किसी लोक में उन्हें स्थान मिल पाता है ।
आइए अब जानते हैं आत्महत्या को लेकर क्या कहती है गरुड़ पुराण की बातें : -
आत्महत्या करने के बाद बीच लोक कि बनकर रह जाती है व्यक्ति की आत्मा ;
गरुड़ पुराण के मुताबिक आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की आत्मा बीच में ही लटक के रह जाती है । उस व्यक्ति को तब तक दूसरा जन्म या कोई अन्य ठिकाने नहीं मिलता जब तक उसके जीवन जीने का समय चक्र पूरा नहीं हो जाता । ऐसा कहा जाता है कि मरने के बाद कुछ आत्माएं 10 वे दिन व 13 वे दिन में , तो कुछ आत्माएं 37 से 40 दिनों के बीच में किसी शरीर को धारण कर लेती है ।
लेकिन जिन व्यक्तियों की मृत्यु किसी घटना , दुर्घटना या आत्महत्या से हुई होती हैं तो उन लोगों की मृत्यु अकाल मृत्यु कहलाई जाती है । जिसमें उनकी आत्मा को तब तक शरीर नहीं मिलता जब तक कि उनका जीवन जीने का समय पूरा नहीं हो जाता ।
प्रेत बनकर भटकती है आत्मा ;
ऐसा कहा जाता है कि व्यक्ति तभी आत्महत्या करता है जब उसकी कोई इच्छा अधूरी रह जाती है या फिर तब जब वह किसी गहरे तनाव में जी रहा होता है । इस कारण से आत्मा का नया शरीर को ढूंढ पाना और भी मुश्किल हो जाता है । ऐसे में परेशान होकर आत्मा भूत , प्रेत या पिशाच योनि का रूप धारण करके दर - दर टी के लिए भटकती रहती है । यह तब तक भटकती है जब तक कि उनके मृत शरीर की निर्धारित आयु पूरी नहीं हो जाती । ऐसे में श्राद्ध , तर्पण व धार्मिक किए गए कार्य भी आसानी से आत्मा के भटकाव को मुक्ति नहीं दिला पाते ।
मुक्ति दिलाने के ये है मार्ग ;
अकाल मृत्यु से होने वाली मौतों की आत्मा के भटकाव को मुक्ति दिलाने के लिए गरुड़ पुराण में कुछ उपाय भी बताए गए हैं । ऐसे में मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को शांति दिलाने के लिए तर्पण , दान , पुण्य , गीता का पाठ व पिंड दान करना चाहिए। साथ ही अगर उस व्यक्ति की कोई शेष इच्छा है तो उसको भी पूर्ण कर देना चाहिए ।
इन कार्यों को लगभग 3 सालों तक करना चाहिए । इससे आत्मा को संतुष्टि मिल जाती है और वह दूसरे शरीर को धारण करने में सक्षम हो जाती है ।
( डिस्क्लेमर : - ऊपर दी गई जानकारी धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित है । इसका किसी भी तरह से वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है । इस जानकारी को सम्मानीय जन रुचि में ध्यान रखकर ही पेश किया गया हैं । )
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