धांत्रयोदशी से दीपावली के पर्व का होता है शुभारंभ। मान्यता के दृष्टि से अगर हम बात करें, तो कार्तिक मास की अमावस्या तिथि से पूर्व दो दिन के पहले ही हर वर्ष द्वादशी कि तिथि के दिन धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता हैं।
पौराणिक मान्यताओं के दृष्टिकोण से इस दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। जिसके कारण इस दिन को
धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा ।
दीपावली के 2 दिन के उपरांत यानी धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा होती है। अब ये तो इस त्यौहार को मनाने की बात हो गई, क्या आप जानते है? भगवान धन्वंतरि है कौन । अगर नहीं तो हम आपको बताएंगे इनके बारे में, कहा जाता है भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई। वे समुद्र से अमृत का कलश लेकर उत्पन्न हुए थे। जिस अमृत के लिए देवों और असुरों में संग्राम हुआ था। हालांकि धन्वंतरि वैद्य एवं आयुर्वेद के जनक के रूप में भी जाने जाते है, उन्होंने विश्व कि तमाम वनस्पतियों पर अध्ययन कर उसके अच्छे और बुरे गुण एवं प्रभाव के बारे में जानकारियां हासिल की और प्रकट भी किया । धन्वंतरि के हजारों ग्रंथों में से अब मात्र धन्वंतरि संहिता ही मिल पाती है, जो समस्त आयुर्वेद का मूल स्वरूप एवं ग्रंथ है। कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि लगभग 7 हजार ईसापूर्व हुए थे। धनतेरस के दिन उनका जन्म हुआ था। धन्वंतरि आरोग्य, सेहत, आयु, और यश एवं तेज ,कीर्ति के आराध्य देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
रामायण, महाभारत, सुश्रुत संहिता इत्यादि में इनका उल्लेख मिलता हैं। धन्वंतरि के नाम से और भी कई सारे आयुर्वेदाचार्य हुए हैं। आयु के पुत्र का नाम धन्वंतरी था। भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु के अंशांश अवतार के रूप में माना जाता है ।
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