धनतेरस पर भगवान धनवंतरि की पूजा अर्चना होती है। भगवान धनवंतरी को आयुर्वेद का आचार्य भी कहा जाता है। कहा जाता है कि ये देवताओं के वैद्य हैं। भगवान
धनवंतरि को माता लक्ष्मी का भाई भी कहा जाता है। कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन हो रहा था तब सागर की अतल गहराइयों से चौदह रत्न निकले थे। जिसमे से भगवान धनवंतरि इन्हीं रत्नों मे से एक हैं.
कहा जाता है कि जब देवता और दानव मिलकर मंदार पर्वत को मथनी बनाकर वासुकी नाग की मदद से समुद्र का मंथन कर रहे थे, तब 13 रत्नों के बाद कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को 14वें रत्न के रूप में भगवान धनवंतरि प्रकट हुए थे। वो हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। भगवान धनवंतरि के प्रकट होते ही देवताओं और दानवों के बीच का झगड़ा शुरू हो गया था। अमृत कलश को पाने के लिए देवताओं और दानवों के बीच छीना-झपटी शुरू हो गई। लेकिन बाद ने भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धरकर अमृत कलश हासिल कर लिया।
भगवान धन्वंतरि को चिकित्सा का देवता भी कहा जाता है।
दीपावली त्योहार के एक दिन पहले यानी धनतेरस को भगवान धन्वंतरि की पूजा-अर्चना होती है। मान्यता के अनुसार धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि अखंड लक्ष्मी का वरदान और स्थायी समृद्धि, आरोग्य, सुदंरता और समृद्धि का आशीष देते हैं।
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