पंचांग के अनुसार योगिनी एकादशी हर माह में एकादशी आती है। लेकिन हिंदू धर्म में योगिनी एकादशी को बहुत ही खास महत्व माना जाता है। आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है।
तो आइए जानते है योगिनी एकादशी व्रत कथा और पूजा विधि -
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक कहा जाता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से कम से कम 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
योगिनी एकादशी का व्रत करने के बाद में व्यक्ति को मुक्ति को मुक्ति का एक आसान सा रास्ता मिलता इस व्रत को रखने से और साथ ही कई पापों से मुक्ति भी दिलाती है। ज्योतिष में व शास्त्रों और पुराणों के अनुसार योगिनी महादशा भी आती है। जो व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव डालती है।
योगिनी एकादशी व्रत करने की विधि:
हिंदू धर्म में योगिनी एकादशी को बहुत ही माना जाता है। कहते है कि एकादशी में व्रत रखना का भी विधान होता है। इसमें व्रत रखना बहुत ही शुभ माना जाता है। कहते है कि व्रत रखने से लोगों को 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य मिलता है। इसलिए इस शुभ पर लोगों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। लेकिन ध्यान रखें कि दिन में एक बार फलाहारी कर सकते हैं। स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा-पाठ करें और साथ ही इस मंत्र का जाप करें। मम सकल पापक्षय पूर्वक कुष्ठरोग निवृत्ति मनया योगिनी एकादशी व्रतमहं करिष्ये।
भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराना बहुत ही शुभ माना जाता है और फिर स्नान के बाद उनके चरणामृत को अपने और परिवार के सभी सदस्यों पर छिड़के। यदि संभव हो तो विष्णु सहस्त्रनाम का जप एवं कथा सुनें।
योगिनी एकादशी की व्रत कथा:
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शास्त्रों के अनुसार यह कथा भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। स्वर्ग की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का राजा था। वह राजा बहुत बड़ा शिव भक्त था। हेम नाम का माली पूजन के लिए उसके यहां फूल लाता था। हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी | पूजा में दूर को देखकर राजा कुबेर ने सेवकों को माली के ना आने कारण जानने भेजा और फिर सेवकों ने राजा को पूरी बात आकर सुनाई तो राजा को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसके बाद राजा ने माली को श्राप दे दिया कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी बनेगा। राजा के श्राप ने माली का स्वर्ग से निकलकर धरती पर जा गिरे। धरती पर आते ही माली को कोढ़ को गया और उसकी स्त्री भी उसी समय गायब हो गई।
मृत्युलोक में बहुत समय तक हेम माली दु:ख भोगता रहा लेकिन उसके पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान रहा. एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। उसे देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले कि तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिस कारण से तुम्हारी यह हालत हो गई । हेम माली ने सब कुछ सच ऋषि को बता दिया।
सारी बातें सुनकर ऋषि ने हेमा माली को योगिनी एकादशी का व्रत रखने को कहा। इस व्रत के प्रभाव से वह अपने पुराने स्वरूप में आकर अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक अपना जीवन जीने लगें।
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