कथाओं के अनुसार हजारों वर्ष पहले ऋषि पुलत्सय के ऊपर बहुत बड़ी विपदा आन पड़ी। उनके समय में सूखा और आकाल पड़ने लगा। महर्षि पुलत्सय को ज्ञात था की इस समस्या का हल बहुत सारे धन से ही निकल सकता है। जो की कुबेर द्वारा ही मिल सकता था। परन्तु दैविक नियमों के चलते कुबेर सीधे सीधे धन और वरदान प्रदान नहीं कर सकते थे। तब महर्षि ने विघ्नहर्ता श्री गणेश की आराधना की जिससे प्रसन्न होकर बप्पा ने कुबेर को उनकी सहायता करने की आज्ञा दी।
कुबेर ने महर्षि को उनके नौ रूपों में से किसी भी एक रूप की पूजा करके मंत्रों का जाप करने को कहा, ऐसा करने से वह धन की वर्षा का आशीर्वाद प्रदान करेंगे। जब ऋषि ने कुबेर के दिव्य नौ रूपों की पूजा अर्चना की तथा मंत्रो का जाप किया जिससे गांव से धन से जुड़ी समस्याओं का नाश हो गया। कहते हैं जो कोई भी कुबेर को प्रसन्न कर लेता है दुर्भाग्य उसका साथ छोड़ देता है।
देवी लक्ष्मी और कुबेर की पूजा साथ में करने से दोनों की ही अनुकम्पा उनके भक्तों पर बनी रहती है। धन संपत्ति में बढ़ोतरी होती है, अनाज की कोई कमी नहीं होती है। समाज में यश व सम्मान की प्राप्ति होती है। इनकी पूजा विशेष रूप से मध्य रात्रि में की जाती है। लक्ष्मी जी का जन्म समुद्र से हुआ था तथा इनका विवाह विष्णु जी से हुआ था। कितनी भी बड़ी धन से जुड़ी समस्या क्यों न हो लक्ष्मी जी की विधिवत पूजा करने से समाप्त हो जाती है तथा धन के मार्ग खुलते हैं।
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