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देवी सरस्वती, संसार रचयिता ब्रह्मा जी की अर्धांगिनी हैं। पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि का संचार करते समय ब्रह्मा जी को यह एहसास हुआ की उनकी शक्ति और प्रभाव आदिशक्ति स्वरूप के साथ के बिना अधूरी है। महादेव की अर्धांगिनी पार्वती जी हैं तथा विष्णु जी की अर्धांगिनी लक्ष्मी जी हैं परन्तु ब्रह्मा जी की शक्ति स्वरूप के साथ कोई देवी नहीं थी। इस बात के हल स्वरूप आदिशक्ति अपने भीतर एक तेज उत्पन्न करती हैं जिससे स्वर्ण सा चमकता हुआ श्वेत रंग का प्रकाश बाहर निकलता है। उस प्रकाश से माता सरस्वती उत्पन्न हुई थीं। वह चतुर्भुज स्वरूप में उल्लास से भरी मुस्कान के साथ, दोनों हाथों में वीणा धारणकर कलात्मकता का प्रतीक हो रही थी।
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देवी सरवस्ती की आराधना के लिए मन से उनका ध्यान करने की आवश्यकता होती है। माना जाता है की 4 पहर में एक बार कुछ क्षण के लिए देवी सरस्वती मनुष्य शरीर के मुख की जिव्हा पर विराजमान होती हैं। वह स्वर और वाणी की देवी भी मानी जाती हैं। उनकी मनुष्य जिव्हा पर उपस्थिति के कारण सदैव सोच-समझ कर बोलने की शिक्षा प्रदान की जाती है। कहा जाता है की देवी सरस्वती जिस क्षण जिव्हा पर विराजमान होती हैं उस वक्त पर बोले जाने वाले शब्द सत्य हो जाते हैं। देवी सरस्वती की आराधना करने वाले लोग बुद्धि के कुशल होते हैं। देवी के आशीर्वाद से उनकी चतुराई का कोई मुकाबला नहीं कर पाता है एवं वह सदैव सफलता के मार्ग की ओर बढ़ते हैं।
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