हिन्दू धर्म में बहुत सी कथाएं हम सभी को सुनने मिलती है। कई कथाओं में देवताओं की शक्ति के बारे में भी ज़िक्र किया गया है। बहुत सी ऐसी कथाए हैं जो हम बचपन से सुनते आ रहे हैं और कुछ ऐसी कथाए हैं जो हमने आज तक नहीं सुनी। और इन्ही में से एक कथा देवों के देव महादेव और भगवान कृष्ण के युद्ध की है। श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव और विष्णु जी एक दूसरे के भक्त भी हैं। हिन्दू पुराणों के अनुसार, जो व्यक्ति भगवान शिव को नहीं मानता वह भगवान विष्णु का भी अप्रिय होता है।
एक बार ऐसी घटना हुई जब भगवान शिव और विष्णु जी के अवतार श्री कृष्ण के बीच ही युद्ध छिड़ गयी। पुराणों में बताया गया है कि भगवान शिव और कृष जी के बिच हुई युद्ध का कारण राजा बलि के पुत्र वाणासुर है। वाणासुर से शिव की तपस्या कर के उनसे समस्त भुजाओं का वरदान प्राप्त किया। उससे भयभीत होकर कोई भी उससे युद्ध नहीं करना चाहता था। और वाणासुर को इस बात का अभिमान हो गया। वाणासुर की पुत्री उषा को श्री कृष्ण के पुत्र अनिरुद्ध पर मन मोहित हो गया। वह स्वप्न में ही अनिरुद्ध को देखकर मोहित हो गयी। जब यह बात अनिरुद्ध को पता चला तो वह भी उषा को देख मोहित हो उठें। उषा की सखी से अपनी विद्या से अनिरुद्ध को उनके कमरे से चोरी कर के उषा के कमरे में पहुंचा दिया।
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यह बात जब वाणासुर को पता चला तब वह क्रोधित हो गया और उनसे अनिरुद्ध को युद्ध के लिए ललकारा। उन दोनों के बिच युद्ध छिड़ गयी। जब वाणासुर के सारे शस्त्र विफल हो गए तब उसने अनिरुद्ध को बंदी बना लिया। इस घटना के बारे जब भगवान कृष्ण को पता चला तब वह वाणासुर से युद्ध करने पहुँच गए। वाणासुर को जब लगा कि वह हारने वाला है तब उसने भगवान शिव को याद किया जब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उस पर वार किया तब उसने भगवान् शिव को याद किया।
शिव जी युद्ध के बिच ही प्रकट हुए और सुदर्शन चक्र को बीच में ही रोक दिया। इसके बाद शिव जी और श्री कृष्ण के बीच ही युद्ध छिड़ गया। जब श्री कृष्ण को एहसास शिव जी के रहते वाणासुर को पराजित नहीं कर सकते तब उन्होंने शिव जी से विनती की। विनती के बाद शिव जी वहां से चले गए और इसके बाद श्री कृष्ण ने वाणासुर के चार भुजाओं को छोर कर सभी को सुदर्शन चक्र से काट दिया। इससे वाणासुर का अहंकार ख़त्म हो गया और उसने श्री कृष्ण से क्षमा मांग कर उषा की विवाह अनिरुद्ध करा दी।
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