भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का निर्माणकर्ता और शिल्पकार माना जाता है. इन्हें यंत्रों का देवता कहा जाता है. विश्वकर्मा ब्रह्मा के 7वें पुत्र हैं. हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक़, ब्रह्मा जी के निर्देशानुसार विश्वकर्मा जी ने इंद्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक और लंका आदि राजधानियों का निर्माण किया था.
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सनातन धर्म में विश्वकर्मा पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन लोग भगवान विश्वकर्मा की पूजा के साथ अपने औजारों, मशीनों और दुकानों की भी पूजा करते हैं। विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर दिन शुक्रवार को है। इस दिन कई दुकानें और दफ्तर बंद रहते हैं। इस पूजा को करने के पीछे मान्यता ये है कि इससे व्यक्ति की शिल्पकला का विकास होता है और व्यापार में तरक्की मिलती है। हिन्दू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का निर्माणकर्ता और शिल्पकार माना जाता है। जानिए इनकी पूजा विधि।
हिंदू पंचांग के अनुसार भगवान विश्वकर्मा जयंती का पर्व कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है. इस दिन लोग भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं. विश्वकर्मा पूजा इस साल 17 सितंबर को अर्थात कल है. पंचांग के अनुसार, पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 17 सितंबर को सुबह 6:07 बजे से लेकर 18 सितंबर शनिवार को दोपहर 3:36 बजे तक है. ध्यान रहे कि 17 सितंबर को सुबह 10:30 बजे से दोपहर 12 बजे तक राहुकाल रहेगा. इस दौरान विश्वकर्मा पूजा न करें.
विश्वकर्मा पूजा विधि: विश्वकर्मा पूजा वाले दिन फैक्ट्री, दुकान आदि के स्वामी अपनी पत्नी के साथ शुभ मुहूर्त में पूजा स्थल पर बैठ जाएं। इसके बाद एक चौकी पर भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद जिन मशीनों, औजारों की आप पूजा करना चाहते हैं उन पर हल्दी अक्षत और रोली लगाएं। भगवान विश्वकर्मा को फूल, चंदन, अक्षत, धूप, रोली, दही, सुपारी, रक्षा सूत्र, फल और मिठाई अर्पित करें। ये सब चीजें उन उपकरणों को भी चढ़ाएं जिनकी आप पूजा करना चाहते हैं। पूजा में जल से भरा कलश भी शामिल करें और उस पर हल्दी, चावल और रक्षासूत्र चढ़ाएं। अंत में भगवान विश्वकर्मा जी की आरती उतारें और उन्हें भोग लगाकर प्रसाद सभी में बांट दें। पूजा के अगले दिन भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा का विसर्जन भी ज़रूर करें।
पूजा के दिन फैक्ट्री, वर्कशॉप, दुकान आदि के स्वामी अर्थात यजमान को सपत्नीक सुबह स्नान आदि करके पूजा शुभ मुहूर्त में पूजा स्थल पर बैठ जाएं. पूजा चौकी पर भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित करें. अब जिन चीजों की पूजा करनी है, उनपर हल्दी अक्षत और रोली लगाएं. अब भगवान विश्वकर्मा को अक्षत, फूल, चंदन, धूप, अगरबत्ती, दही, रोली, सुपारी,रक्षा सूत्र, मिठाई, फल आदि अर्पित करें. धूप दीप से आरती करें. ये सारी चीजें उन हथियारों पर भी चढ़ाएं जिनकी पूजा करनी है. अब कलश को हल्दी और चावल के साथ रक्षासूत्र चढ़ाएं, इसके बाद पूजा में 'ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:', 'ॐ अनन्तम नम:', 'पृथिव्यै नम:' मंत्र का जप करना चाहिए. जप करते समय साथ में रुद्राक्ष की माला रखें. अंत में आरती करके प्रणाम करते हुए पूजा समाप्त करके प्रसाद वितरण करें.
विश्वकर्मा पूजा का महत्व:
कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही देवताओं के लिए अस्त्रों, शस्त्रों, भवनों और मंदिरों का निर्माण किया था. सृष्टि की रचना में विश्वकर्मा ने भगवान ब्रह्मा का सहयोग किया था. कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यक्ति को किसी भी तरह की कोई कमी नहीं रहती है. व्यापार में वृद्धि होती है. जीवन में धन-धान्य और समृद्धि की कोई कमी नहीं रहती है. उनकी सभी मनोकामना भी पूर्ण होती है.
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