विनायक चतुर्थी का महत्व
विनायक चतुर्थी को वरद चतुर्थी भी कहा जाता है ।वरद अर्थात भगवान जो सबकी इच्छा पूर्ण करते है ।जो लोग ये व्रत करते है उन्हें श्री गणेश के आशीर्वाद के रूप में धैर्य व बुद्धि प्रदान होती है ।बुद्धि और धैर्य दो ऐसे गुण है जो एक मानव को संपन्न करते हुए हिम्मत प्रदान करते है। जो कोई भी ये दो गुण अपने पास रखता है उसे जीवन में सदैव सफलता मिलती है ।
चतुर्थी व्रत कथा
विनायक अर्थात गणेश जी के बारे में कई प्रचलित कथाएँ है ।कहा जाता है एक बार माता पार्वती को जब यह ख्याल आया की उनका कोई पुत्र नहीं है ततःपश्चात उन्होने अपने शरीर के मेल से एक बालक की मूर्ति बनाई और उसे जीवित कर दिया ।ऐसा करने के बाद माता पार्वती बालक को कंदरा के द्वार पर पहरा देने को कह कर स्नान करने चली गई । कुछ समय बाद वहां भगवन शिव आए ,जिनके अंदर जाने के आग्रह को बालक बार बार अस्वीकार कर महादेव को क्रेधित कर देता है ।
बहुत समझने पर भी कोई मार्ग प्राप्त नहीं हो रहा था जिसके पश्चात् शिव क्रोध में आकर बालक का सिर धर से अलग कर देते है । ये जानकर माता पार्वती कंदरा से बाहर आती है ।उनका क्रोध से भरा स्वरुप देख कर सभी देवी देवता भयभीत हो जाते है । तभी भगवान शिव अन्य गन्नों को ये आदेश देते है की वह किसी ऐसे बालक का शिर लेकर आये जिसकी माँ अपने बालक की ओर पीठ करके सोई हो।
गण एक हथनि के बालक का शीश लेकर आते है, जिसे शिव बालक के धार से जोड़ कर उन्हें गणपति का नाम देते है । साथ ही साथ अन्य देवी देवता भी उन्हें अपना आशीर्वाद देते है ,की ,कोई भी कार्य शुरू करने से पहले भगवान गणेश का पूजन करना अनिवार्य होगा और ऐसा न करने पर पूजा करने वाले को उसका मन चाहा फल प्राप्त नहीं होगा ।
पूजा की विधि
सुबह जल्दी उठकर सनान आदि के पश्चात गणेश जी के मंत्र उच्चारण करे और उनका आवाहन कर उन्हें पुष्प ,दूब ,चंदन , दही , फल , मिष्ठान व पान के पत्ते का चढ़ावा चढ़ाये ।धुप दीप जलाकर गणेश जी का पाठ करे व आरती कर भोग का प्रसाद सब में बाटकर ग्रहण करे ।सायं के समय श्री गणेश की पूजा के बाद फलहार करके दूसरे दिन व्रत खोले ।