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वास्तु शास्त्र और ब्रम्ह स्थान से जुड़े कुछ खास उपाय !

Myjyotish Expert Updated 10 Feb 2021 11:49 AM IST
Vastu shashtra
Vastu shashtra - फोटो : Myjyotish
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वास्तु के मध्य स्थान को ब्रम्ह स्थान कहा जाता है। जो किसी भी वास्तु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसे मध्य स्थान या नाभी भी कहते हैं। यहीं से सारा सृजन आरंभ होता है। सारी सृजन की प्रक्रिया या निर्माण की प्रक्रिया यहीं से आरंभ होती है। ब्रम्ह स्थान वास्तु में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है। जिस प्रकार बच्चा जब गर्भ में होता है तो उसे सारा पोषण उसकी नाभि से जुड़ी प्लेसेंटा कार्ड से मिलता है ठीक उसी प्रकार वास्तु को सारा पोषण इसी नाभि या ब्रम्ह स्थान से प्राप्त होता है। अतः इस स्थान का सकारात्मक ऊर्जा से आवेशित होना साफ-सुथरा और पवित्र होना बहुत आवश्यक है। 

ब्रह्म स्थान को शुद्ध और सकारात्मक बनाने के उपाय 

1. ब्रम्ह स्थान के दोष मुक्त अर्थात पवित्र होने पर व्यक्ति शान्त, शील स्वभाव वाला, ज्ञानवान,तेजयुक्त,शीघ्र और सटीक निर्णय लेने वाला होता है। किसी भी विषय का सभी ओर से चिंतन करने वाला, श्रेष्ठ, उत्साही, उदार चरित्र वाला तथा अपने क्षेत्र या विषय में श्रेष्ठ होता है। 

2. ब्रम्ह स्थान में दोष के लक्षण 

इस स्थान में दोष होने पर व्यक्ति सही निर्णय लेने में सक्षम नही होता है तथा उसके कार्य की प्रगति रुक जाती है। घर, आफिस, फैक्ट्री आदि के ब्रम्ह स्थान में दोष होने पर कार्य मे रुकावट आने से गति रुक जाती है। बनाई गई योजनाएं शुरू नही हो पाती हैं या शुरू कर लें तो मूर्त रूप नही ले पाती और बीच में किसी भी कारण के चलते बन्द करनी पड़ती है। इस स्थान में दोष होने पर हृदय,नाभि तथा पेट से संबंधित घातक बीमारियां होने की प्रबल संभावना होती है ऐसा शास्त्रों का कथन है । 

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3. ब्रम्ह स्थान का संबंध सृजन से है। इसीलिए इस स्थान में दोष होने पर संतान उत्पत्ति में भी बाधा उत्पन्न होने की प्रबल संभावना रहती है। 

4. दोष 

शौचालय, सैप्टी टैंक, गंदे पानी का गड्ढा, पाइप लाइन, सीढ़ियाँ, जूते-चप्पल होना, स्टोर होना, लोहे या लकड़ी आदि का कोई भारी फर्नीचर होना,कोई कॉलम, दीवार या बिम्ब आदि का होना,ऊंचा- नीचा होना, गंदगी होना,शल्य होना आदि होने पर ब्रम्ह स्थान का दोषित कहलाता है। 

उपाय 

सर्वप्रथम जो दोष हैं उन्हें दूर करना चाहिए उसके पश्चात शास्त्र में बताई गई विधि अनुसार शुद्धिकरण करवाना चाहिए। इसके लिए सर्व औषधियों का प्रयोग शास्त्रों में विशेष रूप से बताया गया है फिर शुभ चिन्हों से युक्त मंजूषा या कलश जिसमे ब्रम्ह पद से संबंधित वस्तुएं (जैसे धातु,रत्न,संबंधित जड़ी या औषधियाँ, क्रिस्टल शुभ यंत्र और चिन्ह आदि) होती हैं उन्हें विधि अनुसार शुभ मुहूर्त या नक्षत्र में ब्रम्ह स्थान में स्थापित करना चाहिए। 

यदि संभव हो तो मंजूषा स्थापित करने के पश्चात उसी स्थान पर कमल, खीर, दूध, घी,धानी (लाजा) आदि से हवन करने चाहिए। 

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