जिस दिन वराह रूप में भगवान विष्णु ने अवतार लिया वह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी। जिसे वराह जयंती के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह जयंती 9 सितम्बर 2021 को मनाई जाएगी। वराह भगवान विष्णु के तीसरे अवतार थे। श्रीमद्भगवतगीता का श्लोक है - यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम अर्थात जब जब धर्म की हानि होती है, अधर्म का बोलबाला बढ़ता है तब तब मैं स्वयं जन्म लेता हूँ। कृष्ण जी भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे पर उनके द्वारा कही गई ये बात भगवान विष्णु के लिए हर अवतार को सिद्ध करती है। भगवान विष्णु के इस स्वरूप को उद्धारक देवता के रूप में जाना जाता है। वराह अवतार में भगवान विष्णु आधे सुअर एवं आधे इंसान के रूप में अवतरित हुए थे। वराह भगवान का व्रत कल्याणकारी है जो भक्त वराह भगवान के नाम से व्रत रखते हैं उनका सोया भाग्य जाग उठता है। हिन्दू पौराणिक कथाओं में मान्यता है कि भगवान वराह की पूजा करने से धन, स्वास्थ्य और सुख की प्राप्ति होती है। इस अवतार ने बुराई पर विजय प्राप्त की थी और हिरण्याक्ष का वध किया था। ये पूजा भक्त अपने जीवन से सारी बुराइयों को समाप्त करने के लिए करते हैं।
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क्यों लेना पड़ा भगवान विष्णु को वराह अवतार
एक बार दैत्य हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया था। भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी की नाक से अवतार लिया। सभी देवताओं ने पृथ्वी को ढूंढने के आग्रह किया। हिरण्याक्ष ने भगवान ब्रह्मा की साधना की और किसी से पराजित ना होने का वरदान प्राप्त किया। वरुण देव ने उससे कहा की भगवान विष्णु संसार के संरक्षक हैं वो उन्हें पराजित नही कर सकता। ये सुन हिरण्याक्ष भगवान विष्णु की खोज में निकला। तभी नारद मुनि से ये ज्ञात हुआ कि भगवान विष्णु ने बुराई समाप्त करने के लिए अवतार ले लिया है। उधर भगवान वराह अपने दांत पर पृथ्वी को वापस ले आये ये देख हिरण्याक्ष को क्रोध आया उसने भगवान वराह को ललकारा पर एक मुस्कान के साथ वराह आगे बढ़ गए उन्होंने पहले पृथ्वी की स्थापना की फिर हिरण्याक्ष को युद्ध के लिए ललकारा। उसने भगवान वराह पर गदा से प्रहार किया पलभर में गदा को छीन प्रभु ने फेंक दिया, भीषण युद्ध हिअ और हिरण्याक्ष का भगवान वराह ने वध कर दिया और धरती से बुराई का सर्वनाश कर दिया। भगवान के हाथों मृत्यु भी मोक्ष होती है दैत्य हिरण्याक्ष सीधे बैकुंठ लोक गया। हर संकट का हल अंततः नारायण के रूप में ही मिलता है।
वराह जयंती शुभ समय
शुभ मुहूर्त- 01.33 pm - 04.03 pm
तृतीया तिथि प्रारंभ-
रात 02 बजकर 33 मिनट ( 9 सितम्बर 2021 )
तृतीया तिथि समाप्त-
रात 12 बजकर 18 मिनट ( 10 सितम्बर 2021 )
तिथि - 9 सितम्बर 2021 ( दिन - बृहस्पतिवार )
वराह जयंती की पूजा विधि
मुख्य मंत्र - नमो भगवते वाराहरूपाय भूभुर्वः स्वः स्यातपते भूपतित्वं देह्योतदापय स्वाहा
यह पावन पर्व विशेषतः दक्षिण भारत में मनाया जाता है। प्रातःकाल उठकर भगवान वराह की विधि विधान से पूजा की जाती है, कीर्तन, जाप करते हैं। मूर्ति के सामने एक पानी से भरा कलश रखते हैं और आम के पत्ते एवं नारियल रखते हैं।श्रीमद्भगवतगीता का पाठ किया जाता है। इस मंत्र का जाप लाल चंदन की माला से होता है। इस मंत्र के जाप से शहद या शक्कर से 108 बार हवन करने से मनोकामना पूर्ण होती है। भगवान वराह प्रसन्न होते हैं। भक्त को सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। उसके जीवन से बुराइयों का नाश होता है। कलश को बाद में किसी ब्राह्मण को दान कर दिया जाता है। वराह जयंती का व्रत किया जाता है जरूरतमंदों को दान किया जाता है।
मथुरा में भगवान वराह का पुराना मंदिर है, यहां जयंती के दिन आयोजन होता है। धूमधाम से ये पर्व मनाया जाता है। आंध्रप्रदेश के तिरुमाला में एक पुराना मंदिर है जिसे भू वराह स्वामी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां विशेष रूप से पूजा की जाती है उन्हें घी, शहद, मक्खन, दूध, दही, नारियल के पानी से नहलाया जाता है।
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