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Home ›   Blogs Hindi ›   Tulsi Vivah 2020 : mythological significance

वृंदा कैसे बनी माँ तुलसी ? जानें यह पौराणिक कथा

Myjyotish Expert Updated 23 Nov 2020 05:02 PM IST
Tulsi vivah
Tulsi vivah - फोटो : Myjyotish
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तुलसी (पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी, जिसका नाम वृंदा था। राक्षस कुल में जन्मी यह बच्ची बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी। जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में ही दानव राज जलंधर से संपन्न हुआ।

राक्षस जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी, सदा अपने पति की सेवा किया करती थी। एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा.. स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं, आप जब तक युद्ध में रहेंगे, मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी। जब तक आप नहीं लौट आते मैं अपना संकल्प नहीं छोड़ूंगी।

जलंधर तो युद्ध में चला गया और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उसके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को न हरा सके। सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास पहुंचे और सभी ने भगवान से प्रार्थना की।

भगवान बोले, वृंदा मेरी परम भक्त है, मैं उससे छल नहीं कर सकता। इसपर देवता बोले कि भगवान दूसरा कोई उपाय हो तो बताएं लेकिन हमारी मदद जरूर करें। इस पर भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धरा और वृंदा के महल में पहुंच गए।

वृंदा ने जैसे ही अपने पति को देखा तो तुरंत पूजा से उठ गई और उनके चरणों को छू लिया। इधर, वृंदा का संकल्प टूटा, उधर युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया। जलंधर का कटा हुआ सिर जब महल में आ गिरा तो वृंदा ने आश्चर्य से भगवान की ओर देखा जिन्होंने जलंधर का रूप धरा था।

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इस पर भगवान विष्णु अपने रूप में आ गए पर कुछ बोल न सके। वृंदा ने कुपित होकर भगवान को श्राप दे दिया कि वे पत्थर के हो जाएं। इसके चलते भगवान तुरंत पत्थर के हो गए, सभी देवताओं में  हाहाकार मच गया। देवताओं की प्रार्थना के बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया।

इसके बाद वे अपने पति का सिर लेकर सती हो गईं। उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने उस पौधे का नाम तुलसी रखा और कहा कि मैं इस पत्थर रूप में भी रहुंगा, जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा।

इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि किसी भी शुभ कार्य में बिना तुलसी जी के भोग के पहले में कुछ भी स्वीकार नहीं करुंगा। तभी से ही तुलसी जी कि पूजा होने लगी। कार्तिक मास में तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ किया जाता है। साथ ही देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।

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