गृहस्वामिनी द्वारा ऐसी बात सुन वह भिक्षार्थी साधु बिना कुछ पाये ही खाली हाथ चला स गया और पुनः कुछ दिन पश्चात् वह साधु महात्मा आये और भिक्षा की याचना किये। उस क प्त वा समय गृहस्वामिनी अर्थात् साहूकार की कृपण स्त्री अपने पुत्र को भोजन करा रही थी। बोली महाराज ! इस समय भी मुझे अवकाश नहीं है अत: आप फिर आवें। तीसरी बार वे महात्मा पुनः आये तो गृहस्वामिनी ने फिर बहाना बनाकर उन्हें टालना चाहा परन्तु इस बार उन महात्मा ने कहा कि, मैं जब आता हूँ तब तुम्हें अवकाश ही नहीं रहता तो क्या जब तुम्हें बिलकुल अवकाश हो जाय तब तुम मुझे भिक्षा दोगी ? गृहस्वामिनी बोली-हाँ महाराज ! यदि मुझे अभी अवकाश हो जाय तो अभी दे दूँ परन्तु क्या बताऊँ इस समय मुझे अवकाश नहीं है नहीं तो अभी दे देती।
थमहात्मा बोले-अच्छा, यदि तुम अवकाश ही चाहती हो तो बृहस्पतिवार को देर से अर्थात् दिन चढ़े उठो और सारे घर में झाड़ आदि लगाकर एक तरफ एकत्र करके रखो और घर में चौका आदि मत लगाओ तथा घर के पुरुषों को हजामत आदि बनवाने के लिए कह दो तथा रसोई बना कर चूल्हे के पीछे रख देना, सामने मत रखना और सायंकाल जब अंधकार हो जाय तभी दीपक जलाना। बृहस्पतिवार को न तो पीली वस्तु का भोजन करो न तो पीला वस्तु ही धारणकरो। ऐसा करने से तुम्हें अवकाश अवश्य मिलेगा।
इस महाशिवरात्रि अपार धन ,वैभव एवं संपदा प्राप्ति हेतु ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में कराएं रूद्राभिषेक : 11 मार्च 2021
फिर तो गृहस्वामिनी ऐसा ही करने लगी, जिसका फल हुआ कि उसके घर में भोजन को एक दाना भी न रहा और उसे हर समय अवकाश रहता, कोई काम ही न करना पडता था। एक दिन अचानक वे ही महात्मा उसके द्वार पर गये के तो उन्हें पुन: आया देख गृहस्वामिनी बोली-महाराज ! अब मैं आपको क्या दूं मेरे घर में तो एक भी दाना नहीं है। महात्मा बोले- अब मुझे तुम क्यों नहीं कुछ देती अब तो तुम्हें बिल्कुल अवकाश है।
जब तुम्हारे घर में सब कुछ था तब तुम धन-धान्य से पूर्ण थी तब तो तुम्हे अवकाश ही नहीं था। अब तो तुम्हें पूरा-पूरा अवकाश हो गया, अब तुम्हें क्या चाहिये, तुम तो अवकाश ही चाहती थी सो तुम पा गयी। गृहस्वामिनी बोली- महाराज ! मैं हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हूँ कि अब आप ऐसा कोई उपाय बतलाइये कि जिससे मैं पहले जैसी ही सम्पन्न हो जाऊँ। मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूँगी। फिर तो उसकी प्रार्थना से महात्मा द्रवीभूत हो गये और बोले, अच्छा सुनो-प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर अपने घर में गौ के गोबर से लीपकर स्वच्छ करो। घर के पुरुष बृहस्पतिवार को कभी भी हजामत न बनवाकर शुक्रवार को बनवावें, ठीक समय पर सायंकाल दीपक जलाओ।
क्षुधापीड़ितों को भोजन तथा प्यासों को पानी देती रहो। ऐसा करने से तुम धन-धान्य तथा ऐश्वर्य से पूर्ण रहोगी तथा भगवान् बृहस्पतिजी की कृपा से सब मनाकामनाएं पूर्ण होगा, एस वे महात्मा अन्तर्धान हो गये फिर तो उस घर की स्वामिनी ने उनके कहे अनुसार समस्त कार्य करना प्रारम्भ किया, जिससे वे भगवान् बृहस्पति उसके ऊपर प्रसन्न हुए और वह धन-धान्य से पूर्ण हो गयी। इस प्रकार नियम पालन करने वाले सभी स्त्री-पुरुष बृहस्पतिजी के प्रिय होते हैं तथा उनकी समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
यह भी पढ़ें :
बीमारियों से बचाव के लिए भवन वास्तु के कुछ खास उपाय !
क्यों मनाई जाती हैं कुम्भ संक्रांति ? जानें इससे जुड़ा यह ख़ास तथ्य !
जानिए किस माला के जाप का क्या फल मिलता है